भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों अपने एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल के साथ सऊदी अरब की यात्रा की। लगभग 25 वर्षों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा सऊदी अरब की की गई इस यात्रा को भारत व सऊदी अरब के मध्य आपसी रिश्तों को माबूत बनाने के लिए कांफी उपयोगी बताया जा रहा है। इस सिलसिले में एक ख़बर यह भी सुनाई दी कि भारतीय प्रधानमंत्री का सऊदी अरब के शाही परिवार द्वारा ऐसा विशेष स्वागत किया गया जो आमतौर पर अन्य अतिथियों के अरब आने पर नहीं किया जाता। मनमोहन सिंह की इस अरब यात्रा के दौरान जहां अनेक समझौतों पर सहमति हुई वहीं सबसे प्रमुख समझौता दोनों देशों के मध्य प्रत्यार्पण संधि को लेकर भी हुआ है। इस समझौते के बाद अब भारत के लिए अपने देश के किसी वांछित अपराधी को सऊदी अरब से भारत लाए जाने में आसानी हो जाएगी। परंतु क्या इस प्रकार के समझौतों से इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि सऊदी अरब की वैश्विक स्तर पर फैले आतंकवाद तथा इस आतंकवाद को इस्लामी जेहाद के साथ जोडे ज़ाने में कोई भूमिका नहीं है? आमतौर पर दुनिया की नज़र में शांत दिखाई देने वाला सऊदी अरब क्या वास्तव में वैचारिक रूप से भी वैसा ही शांतिपूर्ण है जैसाकि वह दिखाई देता है?
इस विषय पर चर्चा आगे बढ़ाने से पूर्व यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि वहाबी विचारधारा जोकि इस समय पूरी दुनिया के लिए इस्लामी आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रेरक बन चुकी है उसकी जड़ें दुनिया में और कहीं नहीं बल्कि सऊदी अरब में ही हैं। अर्थात यदि वहाबी विचारधारा अतिवादी इस्लाम के रास्ते पर चलना सिखाती है तो अतिवादी इस्लाम ही जेहाद शब्द को अपने तरीके से परिभाषित करते हुए इसे सीधे आतंकवाद से जोड़ देता है। आईए वहाबी विचारधारा के स्त्रोत पर भी संक्षेप में दृष्टिपात करते हैं। 18वीं शताब्दी में सऊदी अरब के एक अतिवादी विचार रखने वाले मुस्लिम विद्वान मोहम्मद इब् अब्दुल वहाब द्वारा इस्लाम को कट्टरपंथी रूप देने का यह अतिवादी मिशन चलाया गया। उसने ‘शुद्ध इस्लाम’ के प्रचार व प्रसार पर बल दिया। जिसे वह स्वयं जरूरी समझता था उसे तो उसने इस्लामी कार्यकलाप बताया और जो कुछ उसकी नारों में उचित नहीं था उसे उसने गैर इस्लामी, बिदअत अथवा गैर शरई घोषित किया। मोहम्मद इब् अब्दुल वहाब का यह मत था कि मुस्लिम समाज के जो लोग गैर इस्लामी (उसके अनुसार) कार्यकलाप करते हैं वे भी कांफिर हैं। अशिक्षित अरबों के मध्य वह जल्द ही काफी लोकप्रिय हो गया। इस विचारधारा के विस्तार के समय अरब के मक्का व मदीना जैसे पवित्र शहरों में वहाबी समर्थकों ने बड़े पैमाने पर सशस्त्र उत्पात मचाया। परिणामस्वरूप मक्का व मदीना में बड़ी संख्या में निहत्थे मुस्लिम औरतों, बच्चों व बुजुर्गों का कत्लेआम हुआ। इन्हीं के द्वारा उस ऐतिहासिक मकान को भी ध्वस्त कर दिया गया जहां हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था। इस विचारधारा के समर्थकों द्वारा अरब में स्थित तमाम सूंफी दरगाहों तथा मज़ारों को भी नष्ट किया गया। आगे चलकर इसी विचारधारा ने सऊदी अरब की धरती पर ही जन्मे ओसामा बिन लाडेन जैसे मुसलमान को दुनिया का सबसे ख़तरनाक आतंकवादी बनने के मार्ग पर पहुंचा दिया।
जब यही ओसामा बिन लाडेन दुनिया का मोस्ट वांटेड अपराधी बन जाता है तब यही सऊदी अरब की सरकार उसे देश निकाला देकर स्वयं को पुन: पाक-साफ, शांतिप्रिय तथा अविवादित स्थिति में ला खड़ा करती है। और तो और यदि उसे लाडेन या दुनिया के अन्य जेहादी अतिवादियों तथा आतंकवादियों के विरुद्ध कुछ कहना सुनना पड़े तो सऊदी अरब इससे भी नहीं हिचकिचाता। इस समय भारत-पाक रिश्तों में रोड़ा बनकर जो नाम सबसे आगे आ रहा है वह है पाकिस्तान स्थित जमाअत-उद-दावा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद का। हाफिज मोहम्मद सईद इस समय दुनिया का सबसे विवादित एवं मोस्ट वांटेड अपराधी बन चुका है। मुंबई में हुए 26-11 के हमले के योजनाकारों के रूप में उसका नाम सबसे ऊपर उभर कर सामने आया है। भारत में 26-11 के हमले के दौरान गिरफ्तार किए गए एकमात्र जीवित आतंकी अजमल आमिर कसाब ने ही हाफिज मोहम्मद सईद के 26-11 में शामिल होने की बात कही है। उसी ने पाकिस्तान के मुरीदके नामक आतंकी प्रशिक्षण कैंप से प्रशिक्षण प्राप्त करने की बात भी कुबूल की है। यह प्रशिक्षण केंद्र जमात-उद-दावा द्वारा संचालित है। नई दिल्ली में गत् 25 फरवरी को भारत-पाक के मध्य हुई विदेश सचिव स्तर की बातचीत के दौरान भारत की ओर से पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर को जो तीन डोसियर सौंपे गए हैं उनमे हाफिज मोहम्मद सईद सहित 34 आतंकवादियों को भारत को सौंपने की मांग भी की गई थी। इस पर पाकिस्तान ने अपना रुंख स्पष्ट करते हुए यह सांफ कर दिया है कि वह हाफिज सईद को भारत के हाथों कतई नहीं सौंपेगा।
25 फरवरी को नई दिल्ली में हुई इस वार्ता के बाद हाफिज मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान में एक टी वी चैनल को अपना साक्षात्कार दिया। इस साक्षात्कार में जहां उसने अन्य तमाम बातें कीं वहीं वह यह णबताने से भी नहीं चूका कि उसकी सोच व फिक्र के पीछे सऊदी अरब में ग्रहण की गई उसकी शिक्षा का सबसे बड़ा योगदान है। संभवत: इसी अतिवादी शिक्षा के ही परिणामस्वरूप साक्षात्कार के दौरान उसने टी वी कैमरे के समक्ष अपना चेहरा रखने के बजाए कैमरे को अपनी पीठ की ओर करने का निर्देश दिया। पत्रकार द्वारा इसका कारण पूछे जाने पर उसने यही कहा कि फोटो खिचवाना इस्लामी शरिया के लिहाज से जाया नहीं है। गौरतलब है कि हाफिज सईद इस्लामी शिक्षा का प्रोफेसर रह चुका है तथा शैक्षिक व्यस्तताएं छोड़कर अब जमात-उद-दावा संगठन गठित कर इसी के अंतर्गत तमाम स्कूल स्तर के मदरसे, जेहादी विचारधारा फैलाने वाली शिक्षा देने, अस्पताल चलाने तथा अन्य गैर सरकारी संगठन संचालित करने का काम कर रहा है। उसका स्वयं मानना है कि जमात के माध्यम से दुनिया के मुसलमानों को अपने साथ जोड़ना, उनका सुधार करना तथा इस्लामी शिक्षा का वैश्विक स्तर पर प्रचार व प्रसार करना उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य है। हाफिज सईद स्वयं न केवल यह स्वीकारण करता है बल्कि बड़े गर्व से यह बताता भी है कि धर्म के नाम पर चलने की सीख उसने सऊदी अरब में रहकर वहां के धर्माधिकारियों से ही हासिल की है।
गौरतलब है कि 26-11 के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान पर अत्यधिक दबाव डालने के बाद पाकिस्तान द्वारा हाफिज सईद को नजरबंद कर दिया गया था। उस समय सऊदी अरब से अब्दुल सलाम नामक मध्यस्थताकार पाकिस्तान आए थे जिन्होंने हाफिज सईद व पाक सरकार के मध्य समझौता कराने में अहम भूमिका अदा की थी। आज यह घटना क्या हमें यह सोचने के लिए मजबूर नहीं करती कि आख़िर हाफिज सईद के प्रति सऊदी अरब की इस हमदर्दी की वजह क्या थी? इसी समझौते के बाद न सिंर्फ हाफिज सईद की नारबंदी हटाई गई बल्कि उसके बाद से ही उसने पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में जनसभाओं व रैलियों के माध्यम से भारत के विरुद्ध जेहाद छेड़ने जैसा नापाक मिशन भी सार्वजनिक रूप से चलाना शुरु कर दिया। इसी सिलसिले में एक बात और याद दिलाता चलूं कि पाकिस्तान में इस्लाम को अतिवादी रूप देने के जनक समझे जाने वाले फौजी तानाशाह जनरल ज़िया उल हक के सिर पर भी सऊदी अरब की पूरी छत्रछाया थी। एक और घटना का उल्लेख करना यहां प्रासंगिक होगा। जनरल परवो मुशर्रंफ ने जब नवाज शरींफ की सरकार का तख्ता पलटा तथा उन्हें जेल में डाल दिया उस समय भी सऊदी अरब ने मध्यस्थता कर नवाज शरीफ को जनरल परवेज मुशर्रंफ के प्रकोप से बचाने में उनकी पूरी मदद की थी तथा शरीफ को सऊदी अरब बुला लिया गया था। यह उदाहरण इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए काफी है कि पाकिस्तान व सऊदी अरब के मध्य कोई साधारण रिश्ते नहीं हैं बल्कि सऊदी अरब पाकिस्तान के प्रत्येक राजनैतिक उतार-चढ़ाव पर न केवल अपनी गहरी नार रखता है बल्कि संभवत: वह पाकिस्तान में अपना पूरा दंखल भी रखता है।
कितनी विचित्र बात है कि एक ओर तो भारतीय प्रधानमंत्री सऊदी अरब से मधुर रिश्ते स्थापित करने की ग़रज से सऊदी अरब जा रहे हैं तथा अरब का शाही परिवार उनका अभूतपूर्व स्वागत कर यह संदेश भी दुनिया को देने की कोशिश कर रहा है कि भारत व सऊदी अरब दोस्ती की राह पर आगे बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर यही सऊदी अरब पाकिस्तान में जमात-उद-दावा सहित ऐसे कई संगठनों की आर्थिक सहायता भी कर रहा है जोकि भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में सक्रिय हैं। लश्करे तैयबा जोकि पाकिस्तान स्थित सबसे खूंखार आतंकी संगठन है तथा जिस पर 26 फरवरी को काबुल में हुए भारतीयों पर हमले करने का भी ताजातरीन आरोप है उस संगठन के प्रति हाफिज सईद ने अपनी पूरी हमदर्दी का इजहार भी किया है। उसने अपने साक्षात्कार में सांफतौर पर यह बात कही है कि वह न केवल लश्करे तैयबा के साथ है बल्कि प्रत्येक उस संगठन के साथ है जो कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए जेहाद कर रहे हैं। जेहाद को भी हाफिज सईद अपने ही तरीके से परिभाषित करते हुए यह कहता है कि किसी जालिम से स्वयं को बचाने हेतु की जाने वाली जद्दोजहद को ही जेहाद कहते हैं। उसके अनुसार वह कश्मीरी मुसलमानों को भारतीय सेना से बचाने हेतु जो प्रयास कर रहा है वही जेहाद है।
सऊदी अरब से अतिवादी शिक्षा प्राप्त करने वाला यह मोस्ट वांटेड अपराधी कश्मीर में सशस्त्र युद्ध को भी सही ठहराता है तथा इसमें शामिल लोगों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देता है। वह संसद पर हुए हमले तथा 26-11 के मुंबई हमलों में अपनी संलिप्तता होने से तो इंकार करता है परंतु जब उससे यह पूछा गया कि सार्वजनिक रूप से आपके यह कहने का क्या अभिप्राय है कि ‘एक मुंबई काफी नहीं’। इसके जवाब में हाफिज सईद के पास बग़लें झांकने के सिवा कुछ नहीं था। वह भारत द्वारा सौंपे गए डोसियर को भी अपने विरुध्द प्रमाण नहीं बल्कि साहित्य बताता है। उसने सांफतौर पर पाक सरकार को यह भी कहा है कि वह भारत के विरुद्ध जेहाद का एलान कर जंग की घोषणा करे अन्यथा पाक स्थित धर्मगुरु भारत के विरुद्ध जेहाद घोषित करने के बारे में स्वयं फैसला लेंगे। उसका कहना है पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा तथा जमात-उद-दावा के सदस्य पाकिस्तान के साथ भारत के विरुद्ध लड़ने को तैयार हैं।
उपरोक्त हालात भारत के लिए निश्चित रूप से अत्यंत चिंता का विषय हैं। दुनिया को पाकिस्तान में फैले आतंकवाद के साथ-साथ सऊदी अरब में चलने वाली उन अतिवादी गतिविधियों पर भी नजर रखनी चाहिए जिनके परिणामस्वरूप पूरी दूनिया में सांप्रदायिकता तथा इस्लामी वर्गवाद की जड़ें तेजी से फैल रही हैं तथा माबूत होती जा रही हैं। जजिया उल हक से लेकर हाफिज सईद तक की जाने वाली सऊदी अरब की सरपरस्ती का परिणाम पाकिस्तान को क्या भुगतना पड़ रहा है यह न केवल पाकिस्तानी अवाम बल्कि पूरी दुनिया भी देख रही है।
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