नई दिल्ली. महंगाई से जहां परेशान जनमानस बेहाल है, वहीं सरकार का मानना है महंगाई में कमी के संकेत मिले हैं. कृषि एवं उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की मानें तो पिछले कई सप्ताहों के दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट के संकेत मिले हैं. पिछले तीन महीने के दौरान आटा, चना दाल, अरहर दाल, उड़द दाल, मूंग दाल, मसूर दाल, आलू और प्याज के मूल्यों में जहां गिरावट के संकेत मिले हैं, वहीं चावल, गेंहूं और नमक के दाम स्थिर रहे हैं. इसके अलावा पिछले एक माह के दौरान गेंहूं, चीनी, सरसों तेल और चाय की क़ीमतों में भी गिरावट के संकेत मिले हैं.
सरकार का दावा है कि वह नियमित रूप से कीमतों की स्थिति पर नज़र रखे हुए है और खाद्य पदार्थों की क़ीमतों को घटाने और लोगों, विशेषकर गरीब लोगों के लिए किफायती दरों पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठा रही है. खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में सुधार को ध्यान में रखते हुए निर्यातों को घटाने और आयातों को प्रोत्साहित करने की दिशा में नीति संबंधी निर्णय किए गए. कुछ खास मामलों में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को कुछ सामग्रियों के आयात के लिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरण के लिए राज सहायता दी गई है. कुछ सामग्रियों के निर्यातों पर पूरी तरह रोक लगाई गई है. देश में कमज़ोर वर्गों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को काफ़ी समर्थन प्रदान किया है. केन्द्र की ओर से जारी मूल्यों को साल 2002 से स्थिर रखने की कोशिश करना इस दिशा में उठाया गया एक बेहद अहम क़दम है. प्रतिकूल मानसून के बावजूद चावल की अच्छी खरीद करते हुए ख़रीफ़ विपणन मौसम 2009-10 (अक्तूबर-सितम्बर) में 24 फरवरी, 2010 तक 2278 लाख टन चावल की खरीद की गई है. नतीजतन पहली फरवरी, 2010 को केन्द्रीय पूल में 206.23 लाख टन गेंहूं और 256.58 लाख टन चावल का पर्याप्त भंडार मौजूद रहा. इसके अलावा कई आवश्यक वस्तुओं के लिए भंडार सीमाओं के निर्धारण और क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकारों को शक्तियां प्रदान करने हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम के अधीन जारी किए गए आदेशों में सुधार किए गए हैं. इससे इन वस्तुओं की जमाखोरी रोकने में मदद मिलेगी.
कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार ने संसद में हुई मूल्य वृध्दि पर चर्चा के दौरान अपने हाल के जवाब में इनमें से कुछ कदमों के अलावा कारणों को स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि सरकार एक खुली बाज़ार योजना के माध्यम से भंडार जारी करती रही है, ताकि खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित होने के साथ ही उनके मूल्यों पर भी नियंत्रण कायम हो और सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित जरूरतें भी पूरी हों. राज्य सरकारों ने खुदरा उपभोक्ताओं के बीच वितरण के लिए अक्तूबर 2009 से लेकर मार्च 2010 के दौरान 20 लाख टन गेंहूं और 10 लाख टन चावल का आबंटन किया। राज्य सरकार इसके लिए पर्याप्त वितरण सुनिश्चित करना चाहती है, ताकि खुले बाजार में कीमतों पर नियंत्रण कायम हो सके. इसके अलावा 20.8 लाख टन गेंहूं बड़े उपभोक्ताओं के लिए आबंटित किया गया है, जिसे निविदा के माध्यम से बेचा गया है. अन्त्योदय अन्न योजना, गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों और गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवारों के राशन कार्डों के स्वीकृत सदस्यों के लिए प्रति परिवार प्रतिमाह 10 किलाग्राम गेंहूं चावल का अतिरिक्त आबंटन किया गया है. यह आबंटन सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन मौजूदा आबंटन के अतिरिक्त है.
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए देश में खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार होना चाहिए. इस प्रकार सरकार की नीति का एक लक्ष्य खाद्यान्न का पर्याप्त भंडार रखना है, ताकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कल्याण योजनाओं की मांग पूरी की जा सके और मूल्य वृध्दि को भी नियंत्रण में रखा जा सके. बफर मानकों के मुताबिक़ 118 लाख टन चावल और 82 लाख टन गेंहूं (कुल 200 टन) के भंडार के स्थान पर हमारे पास पहली जनवरी, 2010 को 242 लाख टन से भी अधिक खाद्यान्न भंडार उपलब्ध था. सरकार ने पिछले वर्ष में खाद्यान्न की रिकार्ड खरीद की थी और ऐसा प्रतीत होता है कि मौजूदा वर्ष में भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है.
पिछले पांच वर्षों के दौरान प्रमुख फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ा दिए गए हैं, ताकि किसानों की आय में सुधार हो सके, जो देश की जनसंख्या का लगभग 62 प्रतिशत हैं. गेंहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 640 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1100 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया था और धान के लिए इसे 560 रुपए से बढ़ाकर 1000 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है. विदर्भ के किसानों को उनके कपास के लिए 2500 रुपए से लेकर 3000 रुपए प्रति क्विंटल का भुगतान किया गया है. इन उपायों से किसानों की जीविका के स्तर में सुधार के साथ ही उनकी क्रय शक्ति में भी सुधार हुआ है. न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृध्दि करना सरकार का एक जागरूक निर्णय था, जिसके बारे में सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में स्पष्ट तौर से किसान समुदाय के हित में इसे व्यापार का रूप देने के प्रति अपनी प्रतिबध्दता दर्शाई थी. बढ़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों को सही मूल्य का संकेत देना देश में खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही खाद्य सुरक्षा कायम करने के लिए जरूरी है.
एक ओर जहां वर्ष- दर -वर्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढाए गए हैं, वहीं अन्त्योदय अन्न योजना, बीपीएल और एपीएल परिवारों के लिए वर्ष 2002 से लेकर केन्द्र की ओर से जारी मूल्यों (सीआईपी) में कोई वृध्दि नहीं की गई है। इसके कारण पिछले छह वर्षों में खाद्य पदार्थों पर राजसहायता 20,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 60,000 करोड़ रुपए हो गई है.
लगातार पिछले दो वर्षों में चीनी के कम उत्पादन के कारण चीनी के मूल्यों पर काफी दबाव पड़ा है. इसके अलावा सरकार ने किसानों को उनके गन्ना उत्पादन के लिए दिया जाने वाला मूल्य बढ़ा दिया है. किसानों को अब गन्ने की अच्छी कीमत मिल रही है और यह आशा है कि इससे किसान आगामी फसल सीजनों में और भी अधिक क्षेत्र में गन्ने की बुआई हेतु प्रोत्साहित होंगे. मांग और आपूर्ति के बीच की विसंगति को दूर करने और मूल्य नियंत्रित करने के क्रम में सरकार ने कई उपाय किए हैं. बिना शुल्क के ही सफेद परिष्कृत और कच्ची चीनी के आयात को अनुमति दी गई है, ताकि इसकी कमी दूर हो सके और खुले बाजार में चीनी की कीमतों में कमी हो सके. चीनी की अधिशेष प्रतिशतता को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया है. इससे खुले बाज़ार की ऊंची कीमतों के कारण मूल्य वृध्दि के प्रभाव से समाज के कमजोर वर्गों के लोगों को बचाया जा सकेगा. इसके अलावा मई 2009 में चीनी के व्यापार पर 30 सितम्बर, 2010 तक रोक लगा दी गई है. केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयात की गई कच्ची चीनी को अन्य राज्यों में प्रसंस्कृत करने की भी अनुमति दी है. केन्द्र सरकार ने थोक विक्रेताओं और बड़े उपभोक्ताओं के लिए भंडार सीमाओं का निर्धारण कर दिया है। राज्य सरकारों को खुदरा विक्रेताओं के लिए भंडारण सीमा निर्धारित करने की अनुमति दी गई है और कई राज्यों ने ऐसा किया भी है। सरकार के हस्तक्षेप के कारण चीनी की कीमतें लगातार कम हो रही हैं और यह अब 38-40 रुपए के आसपास तक नीचे आ गई है, जबकि ऐसी आशंका थी कि यह 50रुपए तक पहुंचेगी।
भारत में दलहन एक प्रमुख आहार है. हालांकि दलहनों का उत्पादन इनकी मांग की तुलना में कम हुआ है और इस कमी को पूरा करने के लिए इसका आयात करना होगा. इसलिए सरकारी एजेंसियों को आयात बढ़ाने का निर्देश दिया गया. वर्ष 2008-09 के दौरान 24.80 लाख टन दलहनों का आयात किया गया. मौजूदा वित्त वर्ष में अक्तूबर तक 15.90 लाख टन दलहनों का आयात किया गया, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 13.20 लाख टन दलहनों का आयात किया गया था. दलहनों की उपलब्धता बढ़ाने और उसकी कीमतों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से कई उपाय किए गए हैं. काबुली चना को छोड़कर दलहनों के निर्यात पर 22 जून, 2006 से लेकर 31 मार्च 2010 तक रोक लगाई गई है. दलहनों के आयात पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क को पूरी तरह हटा दिया गया है और इस रियायत की अवधि को समय-समय पर बढ़ाते हुए इसे 31 मार्च, 2010 तक लागू किया गया है. अरहर और उड़द दाल के लिए व्यापार पर रोक लगाई गई है. केवल चना दाल का व्यापार भारत में किया जा रहा है जिसकी कीमत स्थिर रही है. दलहनों की घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एसटीसी, पीईसी,एमएमटीसी, एनसीसीएफ और एनएएफईडी नामक सार्वजनिक उपक्रमों सहकारी संगठनों को दलहनों के आयात की अनुमति दी गई है और इसके लिए आवश्यकतानुसार उन्हें इस संचालन में लागत की तुलना में अधिकतम 15 प्रतिशत और सीआईएफ के 1.2 प्रतिशत सेवा शुल्क के भुगतान का भी प्रावधान है. इस योजना के अधीन वर्ष 2009-10 में 5.44 लाख टन दलहनों का आयात किया गया और 23 फरवरी, 2010 तक 5.27 लाख टन दलहनों का निपटारा भी कर दिया गया. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए दलहनों के वितरण की स्कीम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित आयातित दलहनों के लिए 10 रुपए प्रति किलोग्राम की सब्सिडी दी गई है. अब तक पीईसी, एसटीसी, एमएमटीसी और एनसीसीएफ ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिये वितरण के लिए नौ राज्यों – पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को एक लाख 62 हजार टन दलहनों की आपूर्ति की है. हाल ही में 6 फरवरी, 2010 को हुए राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में अनेक राज्यों ने इस स्कीम का एक और साल तक विस्तार करने का आग्रह किया. इस स्कीम का विस्तार अगले वर्ष तक करने का प्रस्ताव है. पीली मटर प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती है. वे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं तथा अन्य दालों की तुलना में उनके वर्तमान भाव भी बहुत नीचे हैं. पीली मटर दाल केन्द्रीय भंडार, मदर डेयरी, नेफेड और एनसीसीएफ के चुनिंदा खुदरा केन्द्रों पर 8 नवम्बर, 2009 से 26 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध कराई जा रही है.
इसी तरह खाद्य वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए केन्द्र ने राज्यों को उपलब्ध कानूनों के तहत कड़ी कार्रवाई करने की सलाह दी है. फ़िलहाल 23 राज्यों संघीय क्षेत्रों ने दलहनों, चावल, धान, खाद्य तेलों, खाद्य तिलहनों तथा चीनी के लिए स्टॉक सीमा लाइसेंसिंग स्टॉक घोषणा जरूरी करने जैसे आदेश जारी किए हैं. खबर है कि राज्य सरकारों ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कार्रवाई कर 1.5 लाख से अधिक छापे मारे तथा 7700 से अधिक लोगों को गिरपऊतार किया गया.
संघीय शासन व्यवस्था में राष्ट्रीय महत्व के मामलों के लिए केन्द्र एवं राज्य स्तर पर समन्वित ढंग से काम करने की जरूरत होती है. कृषि एवं खाद्य मंत्रालय फसल उत्पादन बढ़ाने तथा खाद्य क्षेत्र के प्रबंधन के लिए नियमित आधार पर राज्यों के संपर्क में रहे हैं. महंगाई के मसले पर प्रणानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई. बैठक में हुई सहमति के आधार पर कार्रवाई की गई. कृषि, खाद्य उपलब्धता तथा कीमतें संबंधी सभी मसलों को देखने के लिए मुख्यमंत्रियों और कुछ केन्द्रीय मंत्रियों का कोर ग्रुप गठित किया गया है.
जैसा कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हाल ही में कहा कि मुश्किल दौर गुजर चुका है तथा मूल्य स्थिति में सुधार होगा. रबी मौसम की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है तथा नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष ज्यादा क्षेत्र में गेहूं और दलहनों की बुआई हुई है. जब मार्च के अंत में फसलें बाजार में आनी शुरू होंगी तो खाद्य वस्तुओं की कीमतें और नीचे आएंगी.
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