बिहार के बंटवारे के बाद प्रचुर प्राकृतिक संसाधन झारखंड के हिस्से में चला गया। यहां के लोगों को बाढ़ व सुखाड़ की त्रासदी मिली। ऊपर से राजनीतिक पार्टियों का जाति व धर्म के नाम पर झूठी दिलासा। ऐसे में, यहां के गरीब-गुरबों के सामने पलायन के सिवा कोई चारा नहीं था। गांधीजी श्रम करनेवालों को सम्मान की दृष्टि से देखते थे, लेकिन हाल के वर्षों में श्रमशील बिहारी मजदूरों को इज्जत देने की बजाय उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा है। मराठा क्षत्रप बाल ठाकरे एवं उनके भतीजे राज ठाकरे ने तो सारी मर्यादाओं एवं राष्ट्रीय एकता को तार-तार कर दिया, लेकिन केंद्र की सरकार मूकदर्शक बनकर ताकती रही। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। राजनीतिक महत्वाकांक्षा ऊपर रही, राष्ट्रीय अखंडता चूर-चूर होती रही। प्रांतीय कट्टरता व क्षेत्रवाद की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठना होगा इन प्रांतों के आम नागरिकों को एवं देश के रहनुमाओं को भी, तभी संप्रभु भारत का विकास संभव है। बिहार के लोगों की भलमनसाहत देखिए कि जब मुंबई में बिहार के लोगों को पर मराठियों का अत्याचार जारी था, उसी वक्त बिहार से गुजरने वाली ट्रेन पर सवार दर्जन भर मराठियों को यहां के लोगों ने फूल-मालाओं से स्वागत किया। इस कदम से भी देश के अन्य हिस्सों के नागरिकों को सीख लेनी चाहिए। जिसे आप पिछड़ा कहते हैं, उन्होंने सद्भावना व भाईचारे की ऐसी मिसाल कायम की। देष के कईं हिस्सों में बिहार के छात्र-मजदूर पिटते रहे, किंतु बिहार में रह रहे अन्य प्रांतों के लोगों को छुआ तक नहीं यहां के नागरिकों ने। दिल्ली में पंजाबी लोग बिहार के मजदूरों को भद्दी-भद्दी गालियां देकर प्रताड़ित करते हैं। लेकिन बिहार में उसी पंजाब के लोगों को श्रध्दा की दृष्टि से देखते हैं बिहारवासी। बिहार में अवस्थित गुरुद्वारे को कभी क्षति नहीं पहुंचाई जाती है। क्या पंजाबी भाई बिहारियों से कुछ सीख ले सकते हैं?
बिहार ने पंद्रह साल तक कुशासन का दंश झेला। नीतीश की सरकार आई तो राज्य में विकास की हल्की बयार चली। राज्य सरकार के गठन के बाद सूचना अधिकार अधिनियम कानून को लागू किया गया। नीतीश सरकार ने भ्रष्ट पदाधिकारियों-कर्मचारियों पर नकेल कसने के लिए विजीलेंस को सक्रिय किया। फलतः प्रदेश के दर्जनों पदाधिकारी रिश्वत लेते पकड़े गए। स्पीडी ट्रायल के जरिये आपराधिक किस्म के राजनीतिज्ञों एवं अपराधियों को जेल की सींखचों में डाला। स्पीडी ट्रायल के तहत केवल जनवरी माह में 68 अभियुक्तों को मुजफ्फरपुर कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई है। मुख्यमंत्री द्वारा नियमित जनता दरबार लगाकर प्रदेशवासियों के दुख-दर्द दूर करने की कोशिश भी राज्य सरकार की सराहनीय पहल है। बीते लोकसभा चुनाव में जनता ने तमाम आपराधिक पहचान वाले नेताओं को हराकर यह जता दिया कि बिहार की जनता भले निर्धन हों लेकिन परिपक्व और महान है। इक्के-दुक्के आपराधिक किस्म के नेताओं को जदयू ने टिकट थमा दिया तो, जनता ने जदयू लहर के बावजूद उसे नकार दिया और नीतीश को एक तरह की चेतावनी दे डाली कि अब बहुत हुआ। सरकार के साढ़े चार साल के शासनकाल में जर्जर हो चुके अधिकांश स्कूल भवन, अस्पताल एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का कायाकल्प हो गया है। दीवारों पर रंग-रोगन चढ़ गए और वीरान हो चुके अस्पतालों में मरीजों की भीड़ उमड़ने लगी है। सड़क बनाने वाले ठेकेदारों पर भी नकेल कसा गया, जिसका परिणाम आया कि सड़कों के निर्माण में घटिया सामग्री के इस्तेमाल पर कुछ अंकुश लगा है। इन पंक्तियों के लेखक को गत दिनों दक्षिण बिहार के नक्सल प्रभावित गया, जहानाबाद, औरंगाबाद एवं चंपारण की यात्रा पर जाने का मौका मिला। वहां के लोगों से बातचीत हुई। राजद शासन के दौरान बारा हत्याकांड में 42 लोगों की गर्दन रेतकर हत्या कर दी गई थी। बारा के पीड़ित परिवारों ने बताया कि इस सरकार में कम-से-कम हमलोग चैन से सोते हैं। अपराधियों में भय का माहौल है। पक्की सड़कें गांव-गांव तक बिछ रहीं है। हालांकि, अभी बहुत काम बाकी है। बावजूद इसके, आए परिवर्तन से बिहार की छवि भी बदलने लगी है। रोजगार के अवसरों में इजाफा होता देख प्रताड़ित गिरमिटिया मजदूर अपने सम्मान की खातिर भी अपने प्रदेश वापस लौटने लगे हैं। जब पंजाब के खेतों में धान-गेंहूं काटने के लिए मजदूरों का अभाव हो गया, तब वहां के किसानों को बिहार के मानव संसाधन की अहमियत समझ में आई। अंततः वहां के किसानों ने बिहार के मजदूरों को ससम्मान पंजाब बुलाया।
खैर, तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बिहार की तस्वीरें बदल रही हैं। यहां की कईं युवा प्रतिभाओं ने अपने काम से देश-दुनिया का ध्यान खींचा है। पटना का सुपर थर्टी देश का एकमात्र ऐसा संस्थान बना, जिसने गरीब रिक्शाचालक, रेहड़ीवाले, दैनिक मजदूर, निर्धन किसान आदि के बच्चों को मुफ्त कोचिंग देकर आईआईटी में प्रवेश दिलाया। गत दो साल से सुपर थर्टी ने शत-प्रतिशत सफलता के साथ दुनिया भर में नाम कमाया। इसके कर्ताधर्ता आनंद कुमार के इस कारनामे पर डिस्कवरी चैनल ने डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाया। मुजफरपुर की मधुमक्खी वाली अनीता कुशवाहा की शानदार कहानी दुनिया के मानचित्र पर पहुंची। यूनिसेफ ने अनीता को स्टार गर्ल घोषित किया एवं अपने वार्शिक रिपोर्ट के कवर पर उसकी तस्वीरें छापी। आज वह एनसीआरटी के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही है। गांव के एक सामान्य किसान परिवार की अनीता को अमेरीका बुलाकर सम्मानित किया गया। मुजफ्फरपुर में ही 2007 में शुरू हुआ ग्रामीण लड़कियों का समाचार चैनल ‘अप्पन समाचार’ भी दुनिया में पहले ऑल वुमेन विलेज न्यूज चैनल के रूप में चर्चित हुआ। इस अनोखे काम ने भी देश-विदेश का ध्यान बिहार की ओर खींचा। सीएनएन-आईबीएन की ओर से अप्पन समाचार को ‘सिटीजन जर्नलिस्ट अवार्ड’ दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने प्रदान किया। वैशाली जिले के डॉ विन्देश्वरी पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल के जरिये शौचालय व स्वच्छता पर अद्वितीय काम कर बिहार का नाम सरहद पार पहुंचाया। गया के स्वर्गीय दशरथ मांझी ने बाइस सालों तक छेनी-हथौड़ी चलाकर पहाड़ का सीना चीर डाला और रास्ते की लंबाई लगभग 70 किलोमीटर कम कर दी। दशरथ की तपस्या सिध्द करती है कि बिहार के लोग कितने उद्यमशील होते हैं। फेहरिस्त लंबी है, सबका जिक्र करना एक छोटे से लेख में संभव नहीं है।
आजाद भारत के लोग, जो खुद को मराठी, सरदार, असमिया, बंगाली, गुजराती, दिल्लीवाला मानकर गौरवान्वित होते हैं और बिहार, उत्तर प्रदेश एवं अन्य हिन्दी प्रदेशों को उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं, इन प्रदेशों का अक्स यहां के गरीब मजदूरों के निम्न रहन-सहन में देखते हैं तथा भारत को टुकड़ों में देखते हैं। क्या उपरोक्त उल्लिखित अद्वितीय प्रतिभाओं में देख सकते हैं, जिसने दुनिया को कुछ नायाब चीजें देकर भारत का गौरव बढ़ाया है। आस्ट्रेलिया में पिटे भारतीय छात्रों से जरा पूछिए कि तब क्या उनके अंदर यह भाव आया था कि वे पंजाबी हैं, असमिया हैं, गुजराती हैं, पंजाबी हैं अथवा भारतीय होने का एहसास हुआ था। जब हम देश के बाहर इसी तरह का सौतेला व्यवहार झेलते हैं तब हमें भारतीय होने का एहसास होता है। आइए, हम सब मिलकर एक-दूसरे को सम्मान दें। एक-दूसरे की भाषा, संस्कृति, समाज में घुले-मिले और सिर्फ भारतीय होने का संकल्प लें।
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