खबरदार! किसी के साथ गांधी की तुलना नहीं की जा सकती है। किसी को गांधीनुमा परिधान पहनने की इजाजत नहीं है। कोई गांधी जी की लाठी लेकर चले उसका पैर तोड दिया जाएगा और गांधी के द्वारा लिखी किताबों को कुरान, हदीस, बाईवल, गुरूग्रंथ साहिब, गीता की तरह पूजा जाएगा। यह फरमान जारी किया है मीडिया के कुछ गांधीवादी झंडावरदारों ने। विगत दिनों भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकडी की गलती बस इतनी सी है कि उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई की तुलना गांधी से कर दी, बेचारे के साथ शुरू हो गया मीडिया ट्रायल। इधर मुद्दों की तलाश में बैठी कांग्रेस ने इस खबर को हाथोहाथ लिया और झाटपट नरेन्द्र भाई की तुलना सर्बिया और युगोस्लाबिया के पूर्व राष्ट्रपति स्लोबोदान मिलोसेबिक से कर दी। हालांकि मीडिया ने यह भी खबर छापी है कि गडकडी अपने बयान से मुकर गये हैं। और अपने ताजा बयान में यह कहा है कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे राष्ट्रपिता के इज्जत पर बट्टा लगे, लेकिन हाथ धोकर भाजपा और गडकडी के पीछे पडी मीडिया आज भी यह साबित करने की पूरी कोशिश में है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मोदी की गांधी से तुलना कर एक भयानक राष्ट्रीय अपराध किया है।
गांधीजी की पुण्यतिथि पर सरकारी कार्यक्रम में पोरबंदर पधारे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि बापू और मोदी, दोनों के अनुसार राजनीति गरीबी हटाने का हथियार है। राजनीति का उद्देश्य गरीबी हटाना है। मोदी इसका जीता जागता उदाहरण हैं। अब बताईए इसमें राष्ट्रपिता का कहां अपमान हो रहा है? इतनी सी बात पर भारतीय समाचार माध्यमों में हंगामा खडा हो गया है। अब बोचारे गडकडी साहब की थूक गर्दन में ही अटक गयी है। वे बार बार कह रहे हैं कि मैंने ऐसा नहीं कहा है लेकिन समाचार माध्यम यह मानने को तैयार नहीं है और गांधीवादी इस बयान के खिलाफ आन्दोलन की धकमी दे हरे हैं। यह बात दिगर है कि कांग्रेस, गांधीवादी और सेकुलरों से ज्यादा भाजपा का एक तबका इस बयान से खफा है। लेकिन कुल मिलाकर जो स्वरूप सामने आया है उसमें गांधीवाद का एक नया चेहरा भी अब ध्यान में आने लगा है।
हालांकि गडकडी ने गांधी की तुलना मोदी से नहीं की है, लेकिन यह भी सत्य है कि अगर किसी की तुलना गांधी से की जाये तो इसमें बुराई क्या है और इससे राष्ट्रपिता का अपमान कहां हो रहा है? इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि गांधी की तुलना किसी अन्य व्यक्ति से की गयी हो। सबसे पहले सीमांत प्रदेश के समाजवादी चिंतक खान अब्दुल गफार खान को ही सिमांत गांधी की संज्ञा दी गयी थी। फिर जब देश में कोई बडा आन्दोलन होता था तो उसे गांधी जी की आन्दोलन से तोला जाता था। एक बार अपने इलाके के बाढ मुक्ति के लिए चल रहे आन्दोलन में हिस्सा लेने का अवसर मिला। उस समय उस आन्दोलन का नेतृत्व हुकुमदेव नारायण यादव और रामस्वार्थ चौधरी कर रहे थे। हुकुमदेव बाबू के लिए हमलोगों ने नारा लगाया दरभंगा की यह आंधी है हुकुम नहीं यह गांधी है। बाद में ऐसे नारे कई जगह सुनने को मिले। फिर गांधी पर जब कभी भी कोई सेमिनार सेंपोजियम हुआ उसमें गांधी के गुणों की तुलना किसी न किसी व्यक्ति से की गयी। किसी ने कहा कि जयप्रकाश जी गांधी के तरह जिंदगीभर संघर्ष करते रहे, तो किसी ने कहा डॉ0 लोहिया गांधी की तरह सोचते थे। किसी ने दीनदयाल जी को जनसंघ का गांधी कह दिया, तो किसी ने इन्दुलाल याज्ञनिक को गुजरात के गांधी की संज्ञा दे दी। देश तो देश विदेशों में भी गांधी की तुलना किसी न किसी से होती रही है। जब संयुक्त राज्य अमेरिका में काले लोगों के संघर्ष का नेतृत्व कार्टिन लूथर ने किया तो उन्हें अमेरिका का गांधी कहा गया। दक्षिण अफ्रिका में संघर्ष करने वाले नेलशन मंडेला को अफ्रिका का गांधी कहा गया। राममूर्ति, प्रो0 रामजीसिंह, गंगा आन्दोलन से जुडे कार्यकर्ता अनिल प्रकाश को अपने अपने क्षेत्र का गांधी बताया जाता रहा है। गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुडे कार्यकर्ता सुरेन्द्र भाई को हमलोग गांधीजी कहकर ही पुकारते थे। यानी गांधी देश में सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक कसौटी बन गये। यह गांधी का दूसरा अवतार था। अब यह खिताब नरेन्द्र भाई को दिया जा रहा है तो इसमें कोई आपति नहीं होनी चाहिए। नरेन्द्र भाई एक व्यवस्थित प्रांत के माननीय मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने प्रांत के विकास के लिए काम किया है। प्रांत की जनता ने उन्हें तीन तीन बार चुनकर मुख्यमंत्री बनया। फिर कुछ न कुछ तो खसियत होगी जिसकी तुलना गांधी से की जा सकती है। माना कि उनमें कोई खासियत नहीं है फिर भी किसी की तुलना किसी से की जा रही है तो उसमें किसी को कोई आपति क्यों? क्या यह पूर्वाग्रह से ग्रस्त मानसिकता का द्योतक नहीं है? विगत दिनों किसी ने एक धर्मगुरू का पोशाक पहन लिया, फिर उसने उसी धर्मगुरू की नकल करते हुए अपने शिष्यों को पवित्रजल पिला दिया, बस हो गया बबाल। उसके खिलाफ एक खास पंथ के लोगों ने भाजनी शुरू कर दी तलवार। लाठी लेकर सडक पर उतर आए। पुलिस न होती तो कितनों की जान चली जाती और कितने लोग घायल हो जाते। तालिबानी चरमपंथियों ने बामियान स्थित दुनिया के सबसे बडे बुद्ध प्रतिमा को तोड दिया। कोई मुहम्मद साहब की तस्वीर बना दे उसके खिलाफ फतवा, कोई किसी पंथ गुरू की पोसाक पहन ले तो उसके खिलाफ लडाई। लगता है ऐसा ही कुछ कुछ गांधीवाद के साथ भी घट रहा है। गांधीवादी मोदी से गांधी की तुलना पर नाक सिकोर रहे हैं लेकिन एक पूरा का पूरा परिवार गांधी के नाम की मार्केटिंग कर रहा है उसकी चिंता किसी को नहीं है। एक सवाल उन गांधीवादियों से पूछा जाना चाहिए कि गांधी की तुलना क्या सिर्फ नेहरू परिवार में पैदा होने वालों के साथ किया जा सकता है? आज कोई राहुल के बारे में यह कहता कि वह गांधी की तरह लगते हैं या गांधी की तरह गांव की बात करते हैं तो मैं समझता हूं कि किसी को कोई आपति नहीं होती, लेकिन गांधी को अभिजात्या बना देने वाले वर्तमान गांधीवादी पंडित गांधी की तुलना मोदी जैसे एक साधारण व्यक्ति के साथ कैसे होने देंगे। गांधी की तुलना अभिजात्य परिवार में पैदा होने वालों के साथ ही की जानी चाहिए। मोदी गांव का आदमी है। उससे गांधी की तुलना बिल्कुल नहीं। गांधी की तुलना तो केवल कथित गांधी परिवार के लिए आरक्षित किया गया है। कोई माने या नहीं यह गांधीवाद का जो नया संस्करण सामने आ रहा है वह निःसंदेह गांधीवाद का तालिवानीकरण है। जिस प्रकार मोहम्मद साबह अंतिम पैगंबर हुए। जिस प्रकार जिसस परमेश्वर के अंतिम दूत हुए और जिस प्रकार गुरूगोविंद सिंह के बाद गुरूओं की परंपरा बंद हो गयी उसी प्रकार गांधीवादी इस देश में दूसरा गांधी पैदा हो, इसके पक्ष में नहीं हैं। ऐसा होना गांधीपंथ का अपमान होगा। गांधी से किसी की तुलना नहीं की जा सकती है गांधी का गुण अलौकिक था। वे भगवान के अंतिम अवतार थे। इसलिए गडकडी ने मोदी की गांधी से तुलना करके एक पंथ को अपमानित करने का काम किया है। गांधीपंथी इसे बरदास्त नहीं कर सकते हैं। गडकडी का पुतला जलाया जाएगा। उनके खिलाफ फतबे काटे जाएंगे, गांधी के कपडे, गांधी की लाठी, गांधी का चप्पल, गांधी का चश्मा सब का सब अमेरिका के पेटेंट कार्यालय में पेटेंट कराया जाएगा। उसकी प्रतिकीर्ति का कोई उपयोग करेगा उसकी हत्या तक की जा सकती है। हालिया विवाद से इस प्रकार की प्रवृति पैदा होने का डर है। एक ओर एक फंतासी नेता को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश की मीडिया न जाने क्या क्या कर रही है और दूसरी ओर जिसने विकास का नया मॉडल दिया और उस मॉडल के आधार पर काम करके दिखाया उसे निहायत पुरातनपंथी करार देकर खरिज किया जा रहा है। भारतीय राजनीति की समझ और सूझ-बूझ वाले राजनेताओं को हाशिए पर ढकेला जा रहा है और जो राजनीति में नवसिखुआ है उसे लगातार महिमामंडित किया जा रहा है।
तत्कालीन विवाद में जिस किसी समाचार माध्यम ने मामले को हवा दिया है उसे गांधीवाद पर भरोसा नहीं है। इस मुद्दे पर भाजपा अध्यक्ष को भी ताल ठोक कर कहना चाहिए कि हां, नरेन्द्र भाई भाजपा के गांधी हैं, और हमारे अध्यक्ष काल में भाजपा के अंदर हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार किये जाएंगे जो मोदी की तरह जुझारू और संघर्षशील हों । मोदी की तुलना तो गांधी से होनी ही चाहिए। मोदी मो साढे छः करोड गुजरातियों का समर्थन प्राप्त है। याद रहे कि गांधी भी गुजराती थे और मोदी भी गुजराती हैं। इसलिए गांधीवाद का तालिवानीकरण नहीं होना चाहिए और जो लोग इस षडयंत्र में संलिप्त हैं उन्हें मोदी, गडकडी पर न सही गांधी पर तो रहम करनी ही चाहिए। यह निर्विवाद सत्य है कि गांधी के कुछ गुण मोदी के पास है जिसके कारण आज मोदी गुजरात के जननेता है। जो लोग इसकी आलोचना करते हैं वे गांधीवाद को चरमपंथ में तब्दील करना चाहते हैं। जो न तो गांधीवाद के लिए ठीक है और न ही इस देश के लिए ही ठीक है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गांधी का संपूर्ण व्यक्तित्व अतुलनीय है लेकिन उनके कुछ गुणों से किसी की तुलना पर आपति जताना, गांधीवाद और स्वयं गांधी का अपमान है। आज इस देश में गांधी का एक नया क्लोन तैयार किया जा रहा है। लगातार यह कहा जा रहा है कि गांधी ऐसे ही थे। गांधी को फिर से परिभाषित किया जा रहा है। यह खेल लगातार जारी है। इस खेल को खेलने वाले और गांधी के क्लोन के श्रृजन में लगे कुछ इंडियापंथी इस देश में गांधी के वास्तिविक स्वरूप को बिगाडना चाहते हैं। वर्तमान गांधी विवाद में उन्ही लोगों का हाथ है। ऐसे ही कोई बात बबंडर नहीं बनती है। कोई न कोई तत्व तो जरूर है जो खबडों को तोड- मरोड कर प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करता है। आज ऐसे तत्वों को चिंहित कर उसका पर्दाफास किया जाना चाहिए और गांधीवाद को तालिबानीकरण से बचाना चाहिए।
-इमरान हैदर
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