हम अपने दड़बे में बैठे इस बात पर सोच को एकाग्र करने का सार्थक प्रयास कर रहे थे कि हमारे यहां पर आखिर एक कुकुरमुत्ता उग आने का हर सम्भव प्रयास क्यों कर रहा है। जबकि हमने न ही तो कभी उसका बीजारोपण किया और न ही ऐसा वातावरण बनाया कि वह हमारे यहां पर उगे ही। लेकिन वह प्रभावशाली व्यक्तियों के पास आने वाले अनचाहे व्यक्तियों की तरह हमारे यहां उग आने का कोई भी मौका नहीं गंवा रहा था। हमें परेशानी इस बात की नहीं थी कि वह हमारे यहां क्यों उग रहा है। परेशानी इस बात की थी कि उसने अन्य किसी का घर क्यों नही चुना? और भी बहुत लोग जिन्हें कुकुरमुत्तों के समकक्ष पिछलगुओं की हमेशा आवश्यकता रहती है। ताकि उनके जयकारे लगते रहे हैं और पिछलगुआ को कुछ चाटने को मिलता रहे। खैर हम इस पहेलीनुमा समस्या से निजात पाने के लिये उठ बैठ कर, लेट कर, चलकर यानि हर कोण से विचार कर रहे थे। लेकिन किसी भी तरह के समाधान का सुयोग्य या कुयोग्य विचार हमारी अधपक्की बुध्दि में नही आ रहा था। हां, इस समस्या के उद्गम स्थल को खोजने में हल सूख गया था और माथे पर पसीना आ गया था। लेकिन समाधान गरीब की समस्याओं और नेताओं के आश्वासनों की तरह था जो कभी पूरा होने का नाम ही नही ले रहा था।
हमने अपने दिमाग के साथ साथ पूरे शरीर को ही ढ़ीला छोड दिया कि कहीं तनाव के चलते और समस्या उत्पन ना हो जाय। खैर उसी समय हमारे मौहल्ले के चिराग चतरू ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी। वैसे इन्होंने जिन्दगी भर लोगों के दरवाजे पर दस्तक देने के अलावा कुछ नहीं किया है। पर कभी-कभी खोटे सिक्के भी काम आ जाते हैं। चतरू अपने को राजनीति का पाण्डित्य हासिल होना मानता है। वैसे बड़े बुजुर्गों का कहना है कि शिक्षा और समाधान कहीं से भी मिले ले लेना चाहिये। हमने शरीर को सान्त्वना देकर थोड़ा सीधा किया। यदि अकड के साथ शरीर को सीधा करते तो चिपकी चमड़ी और सिकुड़ी हडि्डया अपना तराना छेड़ सकती थी। हमने हिम्मत करके चतरू के सामने अपनी समस्या को रखा। प्रथमतः तो चतरू हो,हो करके इस प्रकार हँसा कि गली में बैठे कुत्ते चौकन्ने हो कर दरवाजे पर आ गये और घुर्राने लगे। हम घबरा गये कि इस मोहल्ले के चिराग में किसने ऐसा तेल डाला है जिसकी लौ के जलते ही कुत्तों तक को उजाला परेशान करने लगता है और वे हरकत में आ जाते हैं। कुछ क्षण बाद चतरू नॉरमल होकर बोला ”चितवन, मुझे तुम्हारी औकात पर सन्देह होने लगा है। तुम नाहक गरीबी का रोना रोते हो। तुम्हे पता है ये कुकुरमुत्ते बिना हैसियत के उगना तो दूर उस गली की ओर झांकते तक नही जहां फटीचर रहते हैं। तुम्हारे यहां किसी न किसी बात की गन्ध जरूर आती है और उसी गन्ध के मारे ये कुकुरमुत्ते तुम्हारे यहां उग आने की भागीरथी कोशिश कर रहे हैं। हमने कहा, मेरे यहां गन्ध आती है न बाहर गन्दगी और कीचड़ की, अन्दर इस दडबेनुमा मकान में सीलन की, चूहों के पेशाब व उनकी बीठ की, वर्षो से धुल नही पाये इन चिथड़ेनुमा कपडों की और मुझ में पसीने की, पानी की कमी की वजह से सात दिन में एक बार ही नहा पाता और वह भी बिना साबुन के।
चतरू गम्भीरता को ओढ़ते हुए बोला ‘चितवन, बात को मजाक में मत टालो’। हमने कहा चतरू यह सब हकीकत है। वह खानदानी नितिज्ञ की तरह सिर खुजलाते हुए बोला ”चितवन यदि तुम कह रहे हो वह यदि सब सही है तो यह बताओ कि तुम्हारी बेगम का किसी राजनीतिक पार्टी या जलसों में ज्यादा आना जाना तो नहीं है। यदि है तो मेरी सलाह है कि उसे कम करा दो। और मेरी नेक सलाह है कि अपने यहां पर कभी कुकुरमत्ते को उगने मत देना। जहां भी इनकी पैदावार होती है ये आबादी को नही बरबादी को आमन्त्रण देते हैं। ये उन अवसरवादी कार्यकर्ताओं की तरह हैं जो सिर्फ चाटने तक ही साथ रहते है। उसके बाद हाय हाय करने तक भी नही आते हैं।
चतरू ने उठते समय हमारा हाथ दबाया और बोला बरखुरदार बेगम का भी ध्यान रखा करो। हम कुछ बोलते उससे पहले ही वह दरवाजा लांघ चुका था। हम बैठे सोचने लगे कि बेगम का ध्यान तब रखा जाय जब वह घर में रहे। उसे तो पार्टी मिटिगों व जलसो से ही फुर्सत नहीं है। घर का जिम्मा जब कोकरोचों एवं चुहों के हवाले हो तब कुकुरमुत्तों का उगना निश्चित ही हो जाता है। गृहणी के कदम जब बाहर ज्यादा पड़ने लग जाते है तो घर घर नही रह जाता है। तभी बेगम ने घर में दो तीन औरतों के साथ प्रवेश किया। हमारा पुरुषार्थ अंगड़ाई लेता उससे पहले ही हमारी सांस फूलने लगी, यह देख कर कि बेगम बहुमत में थी। जब बहुमत का भूत सवार होता है तो अकेला मत कितना ही सही क्यों ना हो कोई महत्व नहीं रखता। इसलिये हमने चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझी।
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