इस अवसर पर बोलते हुए श्री श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले दस वर्षों से थियेटर मूवमेंट द्वारा अतुल्य भारत की संसकृति को संरक्षित रखने का जो काम किया जा रहा है, वह वास्तव में अतुलनीय है, जिसकी जितनी तारीफ की जाय वह कम है. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के आयोजनों से भारत की लुप्त होती लोक कलाओं को बचाया जा सकेगा. ओडिशा तो वास्तव में कला की खान है, जिसका जीवंत उदाहरण कोणार्क का सूर्य मंदिर ही है. यह राज्य कला के दृष्टि से भी काफी समृद्धि वाला है.
थियेटर मूवमेंट के महासचिव जी.बी. दास महापात्र का कहना था कि कला के संरक्षण के उद्देश्य से ही वे बीते दस सालों से इस छोटे से शहर में यह कार्यक्रम को करते आ रहे हैं. जिसमे केवल भारत के ही नहीं अपितु बंगलादेश व पाकिस्तान के भी कलाकार भाग लेते हैं. उन्होंने आगे कहा कि श्री श्रीवास्तव को यह सम्मान उनके द्वारा बीते पच्चीस सालों से पत्रकारिता एवं कला संस्कृति के लिए किये जा रहे कार्यों के लिये दिया जा रहा है. जिन्हें कला एवं संगीत कि नगरी काशी में स्व. जयशंकर प्रसाद की अमर कृति “गुंडा” एवम श्री विजय तेंदुलकर की रचना “बेबी” के मंचन का श्रय आज भी दिया जाता है. ये नाटक लगभग 25 साल पहले वाराणसी के मुरारी लाल मेहता प्रेक्षा गृह मे खेला गया था. इस अवसर पर श्री पुष्टि के अलावा न्यायमूर्ति डी. पी. महापात्र ,अध्यक्ष डॉ. नारायण साहू आदि भी उपस्थित थे.
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