मुंबई के इन स्वयंभू ठेकेदारों को मराठी भाषा के आगे हिंदी सुनना भी पसंद नहीं है। यह खुले तौर पर देश से अधिक मुंबई को महत्व दे रहे हैं। और तो और देश का जो भी राष्ट्रभक्त अथवा राष्ट्रीय सोच रखने वाला व्यक्ति मुंबई को पूरे देश की गौरवपूर्ण महानगर बताने का ‘साहस’ कर बैठता है यह स्वयंभू ‘सी ई ओ’ उसे धमकी देने लग जाते हैं। उदाहरण के तौर पर राहुल गांधी ने कहा कि मुंबई पूरे देश की है तो इन ठाकरे बंधुओं ने राहुल को ‘रोमपुत्र’ के ‘खिताब’ से ‘सम्मानित’ कर दिया। समाजवादी पार्टी के मुंबई से निर्वाचित विधायक अबु आजमी ने राष्ट्रभाषा हिंदी में शपथ लेने का ‘साहस’ महाराष्ट्र विधान सभा में दिखलाया तो परिणामस्वरूप उन्हें थप्पड़ खाना पड़ा व इन्हीं क्षेत्रीय क्षत्रपों के चमचों के हाथों अपमानित होना पड़ा। मुकेश अंबानी जैसा व्यक्ति जिस पर पूरे देश की अर्थव्यवस्था को गर्व है उसने मुंबई को पूरे देश वासियों की क्या कह दिया कि वह भी घटिया मानसिकता रखने वाले तीसरे दर्जे के इन राजनीतिज्ञों की आलोचना का पात्र बन गए। सचिन तेंदुलकर जैसा क्रिकेट खिलाड़ी जिस पर केवल हमारा देश या देशवासी ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के क्रिकेट प्रेमी भी गर्व व उसका सम्मान करते हैं, ने भी मुंबई को भारतवासियों की बताया यह ‘धूर्त राजनेता’ उसे भी अनाप शनाप बकने लग गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उत्तर भारतीयों तथा मुंबई के रिश्तों को न्यायसंगत बताने की कोशिश की तो ‘ठाकरे एसोसिएटस’ की ओर से उद्धव ठाकरे ने फरमाया -संघ मुंबई की चिंता न करे, हम यहां बैठे हैं।
समझ नहीं आता कि ठाकरे बंधु किस आधार पर मुंबई पर अपना एकाधिकार जता रहे हैं। न तो यह मराठी खानदान से हैं न ही मराठा राजनीति से इनका कभी कोई संबंध रहा है। सूत्र बताते हैं कि बाल ठाकरे के पिता स्वयं मंजदूरी की तलाश में मुंबई जा पहुंचे थे। शायद उसी तरह जैसे आज कोई बिहारी अथवा उत्तर प्रदेश का निवासी रोजी-रोटी कमाने हेतु मुंबई जाया करता है। ऐसे में इस परिवार को मराठा गौरव छत्रपति शिवाजी महाराज का उत्तराधिकारी बनने का ‘गौरव’ कब और कहां से प्राप्त हो गया यह बात समझ से परे है। बड़ी हैरानगी की बात यह भी है कि जो बाल ठाकरे आज मुंबई से उत्तर भारतीयों को यह कह कर भगाना चाह रहे हैं कि मुंबई देश की धर्मशाला नहीं है वही बाल ठाकरे पूरे देश विशेषकर उत्तर भारत में क्या सोच कर अपने राजनैतिक संगठन शिव सेना का विस्तार करने के लिए इच्छुक रहते हैं? लगभग पूरे उत्तर भारत में कहीं न कहीं कोई न कोई व्यक्ति ऐसा जरूर मिल जाएगा जो स्वयं को शिवसेना (बाल ठाकरे) का पदाधिकारी बताता हुआ मिलेगा। आख़िर क्षेत्रीय क्षत्रप के रूप में अपने चेहरे को बार-बार बेनंकाब करने वाले ठाकरे को जब उत्तर भारतीयों की शक्ल ही अच्छी नहीं लगती तो वे किस आधार पर उन्हीं उत्तर भारतीयों के मध्य अपनी संगठनात्मक घुसपैठ बनाने हेतु तत्पर रहते हैं।
जब देश की राजनीति करने की इच्छा करती है तब यही ठाकरे घराना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा का सहयोगी बनकर 6 दिसंबर 1992 की विवादास्पद अयोध्या घटना का भी भागीदार बनता दिखाई पड़ता है। आख़िर क्या है ठाकरे घराने की राजनीति की दिशा और दशा? यह घराना भारतवासी है, हिंदु है, मराठी है अथवा मुंबईया घराना या फिर शोध कर्ताओं के अनुसार मध्य प्रदेश से जुड़ा कोई मंजदूर परिवार? जो भी हो इस घराने ने फिलहाल मुंबई को देश से अलग करने का मानो ठेका ले रखा हो।
आखिर मुंबई की समृद्धि से इस घराने का क्या लेना देना हो सकता है? मुंबई की समृद्धि में समुद्री तट का एक अहम योगदान है। भारत की संरचना तथा इसमें समुद्री प्राकृतिक सौंदर्य और इसके माध्यम से होने वाला समुद्री रास्ते का व्यापार मुंबई की समृद्धि में बुनियाद की भूमिका अदा करता है। ठाकरे घराने कामुंबई की इस प्राकृतिक उपलब्धि से क्या लेना-देना? मुंबई की दूसरी बड़ी पहचान यहां का फिल्मोद्योग है। फिल्म उद्योग की पूरे देश व दुनिया में प्रतिष्ठा का कारण वहां बनने वाली हिंदी फिल्में हैं। इससे भी ठाकरे घराने का लेना तो है और हो भी सकता है। परंतु देना कुछ भी नहीं। मुंबई उद्योग के लिहाज से देश का सबसे बड़ा औद्योगिक महानगर है। धन उगाही के लिहाज से इन्हें यहां से भी लाभ ही पहुंचता है। इस ठाकरे घराने का महानगर के औद्योगिक विकास में भी क्या योगदान है? देश का सबसे बड़ा शेयर बाजार मुंबई में स्थित है। इसका आधारभूत ढांचा भी शिवसेना या ठाकरे घराने द्वारा नहीं खड़ा किया गया है।
हां यदि मुबंई में ठाकरे घराने का कोई योगदान है तो ख़ुशहाल मुंबई में सांप्रदायिकता का जहर फैलाने का, क्षेत्रवाद की दीवारें खींचने का और मराठों को शेष भारतीयों से अलग करने की कोशिश करने का। कुंए के मेंढक सरीखी राजनीति करने वाले बाल ठाकरे की नजर केवल इस एकमात्र लक्ष्य पर केंद्रित है कि किसी प्रकार वे मुंबईवासियों तथा मराठों व शेष भारतीयों के मध्य नफरत व अलगाव की खाई इतनी गहरी करने में सफल हो जाएं कि भविष्य में उनका चश्मे-चिराग उद्धव ठाकरे मराठा मतों का ध्रुवीकरण कर पाने में सफल हो सके तथा इस रास्ते पर चलते हुए राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में सफल हो जाए। अब चाचा ठाकरे की इस ‘कुशल रणनीति’ को भला भतीजे राज ठाकरे से बेहतर कौन समझ सकता था। अत: राज ठाकरे ने भी बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह की कहावत को चरितार्थ करते हुए स्वयं को बाल ठाकरे व उद्धव ठाकरे से भी बड़ा मुंबई का ‘केयरटेकर’ अथवा स्वयंभू ‘सी ई ओ’ प्रमाणित करना शुरु कर दिया है। इन दोनों ठाकरे बंधुओं में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के लिए चल रही प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप उत्तर भारतीयों पर चारों ओर से हमले तेज हुए हैं तथा राष्ट्रभाषा हिंदी को भी इन्हीं बंधुओं के चलते अपमानित होना पड़ रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में एक और अदृश्य राजनैतिक घटनाक्रम भी चल रहा है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। और वह अदृश्य घटनाक्रम है ठाकरे घराने द्वारा मुंबई को लेकर किए जाने वाले नंगे नाच के विरुद्ध देश के किसी भी क्षेत्रीय क्षत्रप का वक्तव्य न आना। राहुल गांधी, सचिन तेंदुलकर, पी चिदंबरम, मुकेश अंबानी, कांग्रेस, आर एस एस, भाजपा, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जेडीयू, आरजेडी व वामपंथी जैसे राजनैतिक संगठनों द्वारा तो यह जोर देकर कहा जा रहा है कि मुंबई पर पूरे देश का अधिकार है तथा मुंबई पूरे भारत की है। परंतु देश में ठाकरे की शिवसेना की ही तरह अन्य भी दर्जनों ऐसे राजनैतिक दल हैं जिनके नेता वैसे तो क्षेत्रीय क्षत्रपों की सी हैसियत रखते हैं परंतु केंद्रीय गठबंधन सरकारों के दौर में यही क्षेत्रीय क्षत्रप देश की राजनीति करते भी दिखाई पड़ जाते हैं। प्रश्न यह है कि आज के दौर में जबकि यह साफ नज़र आ रहा है कि ठाकरे घराना अलगाववाद की दिशा में आगे बढ़ रहा है ऐसे में कांग्रेस व भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की ही तरह तथा सचिन तेंदुलकर व मुकेश अंबानी जैसे राष्ट्रीय सोच रखने वाले राष्ट्र भक्तों की ही तरह देश के अन्य राज्यों के क्षेत्रीय क्षत्रप मिलकर एक स्वर में या फिर अलग-अलग ही सही मुंबई मुद्दे पर अपना मुंह क्यों नहीं खोल रहे हैं ”
मुंबई मुद्दे पर क्षेत्रीय क्षत्रपों की इस रहस्यमयी चुप्पी को साधारण चुप्पी नहीं समझना चाहिए। देश की राजनीति में स्वयं को स्थापित कर पाने में असफल रहने वाले यह क्षेत्रीय क्षत्रप कहीं ठाकरे घराने द्वारा चली जा रही घटिया राजनैतिक चालों का बारीकी से अध्ययन तो नहीं कर रहे हैं और इस पूरे घटनाक्रम के परिणाम की प्रतीक्षा तक चुप्पी बनाए रखने का निश्चय तो नहीं कर चुके हैं। यदि ऐसा है फिर तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए और भी अधिक ख़तरनाक संकेत है। और यदि ऐसा नहीं है, सभी क्षेत्रीय क्षत्रप अथवा क्षेत्रीय राजनैतिक दल अथवा क्षेत्रीय राजनैतिक नेता भारत की एकता व अखंडता को सर्वोपरि मानते हैं, कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक भारतीय नागरिक के आने-जाने,रहने-सहने व कामकाज करने की पूरी स्वतंत्रता के पक्षधर हैं फिर उन्हें एकमत हो कर अब तक ठाकरे घराने को यह संदेश साफतौर से दे देना चाहिए था कि मुंबई पूरे देश की है केवल ठाकरे घराने की ‘जागीर’ नहीं। परंतु क्षेत्रीय सोच रखने वाले नेताओं द्वारा ऐसा करने के बजाए अभी तक रहस्यमयी ढंग से चुप्पी धारण किए जाने का निश्चय किया गया है और इस चुप्पी का रहस्य क्या है भारतवासी यह जरूर जानना चाहते हैं।
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