पहली पत्नी के रहते कोई भी सरकारी कर्मचारी दूसरा विवाह नहीं कर सकता
सुप्रीम कोर्ट की उस ऐतिहासिक टिप्पणी से मुस्लिम महिलाओं को काफ़ी राहत मिलेगी, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि पहली पत्नी के रहते कोई भी सरकारी कर्मचारी दूसरा विवाह नहीं कर सकता. दरअसल, कोर्ट ने राजस्थान सरकार के उस फ़ैसले को सही क़रार दिया है, जिसमें एक मुस्लिम कर्मचारी लियाक़त अली को दूसरी शादी करने की वजह से नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि पहली पत्नी के रहते कोई भी सरकारी कर्मचारी दूसरा विवाह नहीं कर सकता. अगर कोई सरकारी कर्मचारी ऐसा करता है तो उसे सरकारी नौकरी से बर्ख़ास्त करना सही है.
क़ाबिले-गौर है कि राजस्थान सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला राज्य सरकार के ख़िलाफ़ पुलिस कांस्टेबल लियाक़त अली की विशेष अनुमति याचिका पर दिया है. इससे पहले जस्टिस वी.एस.सिरपुरकर और जस्टिस आफ़ताब आलम की पीठ ने राजस्थान सरकार की इस दलील को मंज़ूर कर लिया कि राजस्थान सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल 1971 के नियम 25 (1) के अनुसार सरकारी कर्मचारी पहली पत्नी के जीवित होते दूसरा विवाह नहीं कर सकता. इस मामले में लियाक़त अली ने दलील दी थी कि उसने अपनी पहली पत्नी फ़रीदा खातून से मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक़ लेने के बाद मकसूदा खातून से दूसरा निकाह किया है, जबकि जांच में पाया गया कि उसने पहली पत्नी से तलाक़ लिए बिना मकसूदा से दूसरा निकाह किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 1986 के इस प्रकरण में गत 25 जनवरी को विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई की. शीर्ष कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट की डबल बैंच के 2008 के लियाकत अली के ख़िलाफ़ दिए फैसले को बरक़रार रखा और राजस्थान सिविल सर्विसेज 1971 का संदर्भ देते हुए याचिका को ख़ारिज कर दिया. राजस्थान हाईकोर्ट ने भी लियाक़त अली की बर्ख़ास्तगी को सही ठहराया था. राजस्थान के कर्मचारियों के संबंध में बने सेवा नियमों में स्पष्ट है कि सरकारी कर्मचारी पहली पत्नी के जीवित होते हुए दूसरा विवाह नहीं कर सकता. इन नियमों में विवाह के मामले को धर्म से संबंधित नहीं माना गया. यही वजह थी कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के संदर्भ में कामन सिविल राइट के मामले में सरकार को कॉमन सिविल कोड बनाने का निर्देश दिया था.
मुस्लिम समाज में महिलाओं की हालत बेहद बदतर है। सच्चर समिति की रिपोर्ट के आंकड़े भी इस बात को साबित करते हैं कि अन्य समुदायों के मुक़ाबले मुस्लिम महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से ख़ासी पिछड़ी हुई हैं. यह एक कड़वी सच्चाई है कि मुस्लिम महिलाओं की बदहाली के लिए ‘धार्मिक कारण’ काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं। इनमें बहुपत्नी विवाह और तलाक़ के मामले मुख्य रूप से शामिल हैं।
बहरहाल, यही कहा जा सकता है कि राजस्थान सरकार का यही नियम अगर देशभर में लागू कर दिया जाए तो मुस्लिम महिलाओं की सामजिक हालत कुछ बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है.
-इमरान हैदर
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