भारतीय चिंतन के प्रख्यात व्याख्याकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, भारतीय मजदूर संघ सहित दर्जनों संगठनों के संस्थापक मजदूर नेता स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी की स्मृति में नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में स्वदेशी जागरण मंच द्वारा 22 जनवरी को व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।
‘चीन की चुनौती और हम’ विषयक इस संगोष्टी के मुख्य वक्ता के रूप में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक भगवती शर्मा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी शोध प्रतिष्ठान के निदेशक तरूण विजय ने मुख्य रूप से संबोधित किया।
अपने संबोधन में पांचजन्य के पूर्व संपादक श्री तरूण विजय ने चीन के साथ मित्रता बढ़ाने की वकालत की। उन्होंने यह दावा भी किया कि सन् 2020 तक तो किसी हालत में चीन भारत पर हमला नहीं करेगा।
अपने दावे के समर्थन में उन्होंने कहा कि चीन की रणनीति अमेरिका से आगे निकलने की है। वह भारत से युद्ध मोल ले कर अपने लक्ष्य से विरत होना नहीं चाहेगा।
भारत और चीन के हजारों वर्ष पुराने संबंधों की याद दिलाते हुए श्री विजय ने उपस्थित श्रोताओं का आह्वान किया कि चीन को गहराई से समझने की जरूरत है। चीन के संदर्भ में समूचे देश में स्थान-स्थान पर थिंक टैंक बनने चाहिए। शोध केंद्र स्थापित होना चाहिए। अधिकाधिक लोगों को यूरोप की बजाए घूमने और पर्यटन के लिए चीन जाना चाहिए।
भारत-चीन सम्बंधों के इतिहास का वर्णन करते हुए श्री विजय ने अपनी चीन यात्रा का रोचक विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि देश में चीन को शत्रू मानने वाला एक वर्ग है, वहीं दूसरी ओर इस बात के भी प्रबल पक्षधर हैं कि चीन के साथ विवाद के विषय एक तरफ रखकर सम्बंध स्थापिन होने चाहिए। जहां विवाद है वहां बातचीत का रास्ता निकाला जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ हमारा 9-10हजार साल पुराना नाता है। यह नाता सभ्यतामूलक और संस्कृतिमूलक रहा है। 1962 के पूर्व भारत और चीन के बीच कभी युद्ध नहीं हुआ। दो महानतम सभ्यताओं के रूप में दुनिया ने भारत और चीन को जाना-पहचाना है। दोनों के मध्य संबंधों का सिलसिला अति प्राचीन है।
उन्होंने कहा कि चीन का प्राचीन साहित्य बताता है कि भारत के संतों-महात्माओं की वहां विशेष पूछ रही है। बीजिंग के इतिहास में कुमारजीव प्रथम राजगुरू थे जिनके पिता कश्मीर के और माता चीन के शिंजियांग प्रांत की थीं। कुमार जीव के साथ-साथ भारत के ऋषि कश्यप, ऋषि मातंग, सामंद भद्र का भी उल्लेख चीनी साहित्य और इतिहास में सम्मानपूर्वक होता आया है।
कुमारजीव का विशेष उल्लेख करते हुए श्री तरूण विजय ने बताया कि उन्होंने भारतीय ज्ञान-विज्ञान का चीनी भाषा में अनुवाद किया और वे अनुवाद करने में अति प्रवीण थे। उन्हें सत्रह प्रकार की अनुवाद कला का अनुभवजन्य ज्ञान था।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार चीन से ह्ववेनसांग जैसे यात्री भारत में आए जिन्होंने भारत का प्रामाणिक इतिहास लिखा।
अपने चीन प्रवास का जिक्र करते हुए श्री विजय ने कहा कि भारत और चीन के मध्य संबंध के लिए सरकार द्वारा वह दो बार सम्बंधित समितियों में नामित रहे हैं। दोनों देशों को देखकर अनुभव में यही आता है कि चीनी सामान जिस प्रकार से भारतीय बाजार में अपनी पकड़ बना चुका है उससे चीन भारत के हर घर में पहुंच गया है। इसी प्रकार भगवान बुद्ध के कारण भारत चीन के हर घर में पहुंचा हुआ है।
श्री विजय ने कहा कि चीन ने वेटिकन को अपने देश में मान्यता नहीं दी है। यह बड़ी बात है। इसी प्रकार चीन ने अपने देश में असंतोष को पनपने नहीं दिया। शिंजियांग में उइगर मुसलमानों का दमन कर चीन ने वहां का मूल चीनीयों अर्थात हान वंशियों को बसाकर वहां का जनसंख्या अनुपात ही बदल दिया ।
उन्होंने कहा कि चीन में आज बाजारवाद के साथ राष्ट्रवाद प्रबल है। चीन ने भगवान बुद्ध को भी चीनीकरण कर इस प्रकार उन्हें प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है कि मानो बुद्ध भारत की बजाए चीन में ही जन्में थे। उन्हें सिर्फ अपने देश की परवाह है बाकी दुनिया के हितों के बारे में वे नहीं सोचते।
श्री विजय ने कहा कि भारत के प्रति चीन के सामान्य जन में अपार श्रद्धा है। अगला जन्म भारत में हो, यह वहां के लोगों का स्वप्न है।
उन्होंने कहा कि भारत के साथ चीन के सम्बंध तब बिगड़ने शुरू हुए जब मार्क्सवाद चीन पहुंचा। माओत्सेतुंग के उभार के साथ भारत और चीन के सम्बंध बिगड़ने लगे। लेनिन और माओ के विचार ने चीन में भारत को कमजोर किया।
उन्होंने कहा कि माओत्सेतुंग की सांस्कृतिक क्रांति ने चीन में 4 करोड़ निरपराध लोगों का संहार किया। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने गांव-गांव को रौंद डाला। भारत और चीन के वैचारिक सम्बंध को माओ ने समाप्त किया।
माओवाद के खतरे को रेखांकित करते हुए श्री तरूण विजय ने कहा कि इसका आतंक नक्सली रुपी धरकर देश में फैल रहा है। नेपाल, बिहार, उप्र. से लेकर आन्ध्र प्रदेश तक लाल गलियारा इसी की देन है। नागालैण्ड में एनसीएन को सारी मदद यही मुहैया करा रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत की जीडीपी से चीन तीन गुना ज्यादा समृद्ध है। प्रति वयक्ति के लिहाज से वह 2.2 गुना ज्यादा धनी है। पिछले 100 सालों में जहां भारत का भूगोल सिकुड़कर आधा रह गया है वहीं चीन का भूगोल बढ़कर दोगुना हो गया है। चीन आज एशिया ही नहीं विश्व में नंबर दो बन गया है और आगे चलकर वह नंबर एक बनने की दिशा में अमेरिका को मात करने वाला है। सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक हर मोर्चे पर चीन भारत से ज्यादा मजबूत है।
श्रीविजय ने कहा लेकिन एक बात है जिसे चीन के विद्वान स्वीकार कर रहे हैं जिसमें भारत चीन को मात कर रहा है। और वह बात है कि अराजक राजनीति और तमाम कलह, भेद होने के बाद भी भारत दुनिया का महान लोकतंत्र दिन प्रति दिन मजबूत हो रहा है। यही एक बात है जिसके कारण चीन भारत से आशंकित है। भारत की सभ्यतामूलक, संस्कृतिमूलक चीजें चीन को डराती हैं। इसी के साथ भारत के युवाओं के कमाल के कारण सूचना प्रोद्योगिकी, अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में देश की कमाल की उन्नति को भी वह संशय से देखता है।
भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन पर भी चीन की निगाह है। चीन भारत में राष्ट्रवाद और लोकतंत्र की शक्ति को पहचानने के लिए अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंदोलन का अध्ययन भी करवा रहा है। वह यह जानने का इच्छुक है कि भारत का असली ताकत क्या है। भारत कैसे सफल लोकतंत्र बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि चीन के गांव बदहाल हैं। लोग गरीबी से तंग हैं। मजदूरों का जमकर शोषण हो रहा है। यही कारण है कि चीनी माल दुनिया में सस्ता बिक रहा है। इसी के साथ चीन की कम्युनिष्ट पार्टी भ्रष्टाचार के मामले में भी रिकार्ड तोड़ रही है। हर दिन स्कैण्डल होता है। मीडिया की वहां कोई आवाज नहीं है। सरकारी मीडिया है जो सिर्फ सरकार और कम्युनिष्टों के गीत गाती है। इस प्रकार चीन ने तानाशाही के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं। बच्चों को स्कूलों में पहले दिन से कम्युनिष्ट विचार और चीनी राष्ट्रवाद की शिक्षा दी जा रही है।
श्री विजय ने कहा कि प्रखर राष्ट्रवाद ही चीन का समाधान है। भारत की हिमालयी सीमा पर उसकी दृष्टि गड़ी है, उसे असफल करने के लिए जन-जन में देशभक्ति की भावना जगाना जरूरी है।
श्री विजय ने कहा कि जहा तक चीन के हमले का सवाल है तो हमें डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमले में चीन का नुकसान है। चीन अपने आर्थिक विकास पर ध्यान लगाए बैठा है और वह सन् 2020 तक भारत पर हमले की गल्ती नहीं करेगा।
श्री भगवती शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि चीन की गतिविधियां सन् 62 के समान संधिग्ध हो गई हैं। वह भारत पर हमले की जुगत में है। भारत की चौतरफा घेरबंदी उसने पूर्ण कर ली है।
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