अर्जुन सिंह के ही एक अन्य सहयोगी अजीत जोगी ने निजी (प्राईवेट) विश्वविद्यालय खुलवाने का धंधा चालू किया था। बाद में उच्चतम न्यायालय ने इस धंधे पर रोक लगाने की कोशिश भी की परंतु व्यापार जगत में जैसा कि होता है, जब कोई धंधा एक बार चल निकले तो फिर उसे रोकना असंभव नहीं तो कठिन तो होता ही है। अर्जुन सिंह की देखा-देखी विभिन्न प्रांतों में उनकी शिष्ट मंडली ने भी प्राईवेट विश्वविद्यालय के नाम पर शिक्षा की दुकानें खुलवा दी। अब अर्जुन सिंह की जगह मानव संसाधन मंत्रालय का काम एक वकील कपिल सिब्बल के हवाले कर दिया है। कपिल सिब्बल के शौक अर्जुन सिंह की तरह देसी नहीं हैं बल्कि विदेशी है। इसलिए वे विदेशी विश्वविद्यालयों को हिंदुस्तान में लाने की जोड-तोड में लगे रहते है, जाहिर है इसके लिए उन्हें सोनिया गांधी का समर्थन भी प्राप्त होगा ही। शिक्षा की विदेशी दुकानें खुलवानी हैं तो देसी दुकानों को बदनाम भी करना पडेगा और हटाना भी पडेगा तभी नई दुकानों की जगह बन पाएगी।
शिक्षा की देसी दुकानें हटाने के दो तरीके हो सकते थे। एक तो उनकी गहराई से छानबीन की जाती और जो सचमुच शिक्षा के नाम पर दुकान चला रहे हैं उनकी गर्दन पकडी जाती। जो शिक्षा संस्थान अर्से से सचमुच शिक्षा के प्रचार-प्रसार में लगे हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाता। यह लोकतांत्रिक तरीका था और लाभकारी भी। लेकिन भारत सरकार दरअसल एक तीर से दो शिकार करना चाहती थी वह देसी दुकानों को बंद करवाने की आड में भारतीय शिक्षा के सुप्रसिद्ध गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय को बंद करवाना चाहती थी।
गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय की स्थापना आज से सौ साल पहले 1902 में स्वामी श्रद्धानंद ने की थी इसका उद्देश्य भारत में प्रचलित ब्रिटिश शिक्षा पद्धति के मुकाबले भारतीय शिक्षा पद्धति का माडल स्थापित करना था और यह कार्य इस विश्वविद्यालय ने सफलतापूर्वक किया और आज भी कर रहा है। भारत के आजादी की लडाई में इस विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अपने जन्मकाल से ही यह विश्वविद्यालय अंग्रेजी शासकों की आंखों में खटकने लगा था। लेकिन वे इस गुरूकुल के पक्ष में भारी जनमत को देखते हुए इसे बंद नहीं करवा पा रहे थे। अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी यह विश्वविद्यालय उन लोगों की आंखों में खटकता रहा जो शिक्षा के क्षेत्र में हर स्थिति में ब्रिटिश विरासत को चलाए रहने के पक्षधर थे। जाहिर है गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय ऐसे लोगों की आंखों में खटक रहा है। इन लोगों को या तो विदेशी विश्वविद्यालय चाहिए या फिर अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय यही कारण है कि कपिल सिब्बल का मंत्रालय अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय का विस्तार अन्य राज्यों में भी करने में जुटा हुआ है और विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में लाने के प्रयास कर रहा है अब भारत सरकार ने एक तीर से दो शिकार किए हैं। जिन समकक्ष विश्वविद्यालयों को बंद करने की घोषणा की गई है, उनमें गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय, हरिद्वार का नाम भी डाल दिया गया है। जो काम अंग्रेज सरकार चाहते हुए भी नहीं कर सकी, वह काम सोनिया गांधी और कपिल सिब्बल मिलकर कर रहे हैं। गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय इस देश की विरासत ही नहीं बल्कि अस्मिता की पहचान भी है। नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय को अरबों और तुर्कों की सेनाओं ने घ्वस्त कर दिया था। भारतीय विद्यालयों को मेकाले की शिक्षा पद्धति खा गई थी। अब गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय को कपिल सिब्बल की योजनाएं ध्वस्त कर रही हैं। जब नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय ध्वस्त हुए थे तो भारत के लोग उसका मुकाबला नहीं कर पाए थे और न उसे रोक सके थे लेकिन अब 21 वी शताब्दी में यही काम गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के साथ हो रहा है और इस काम को करने वाले भी दुर्भाग्य से वही लोग हैं जो सिर्फ शक्ल से भारतीय हैं या फिर जिन्होंने कानूनी रूप से भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली है। लेकिन इस बार शायद कपिल सिब्बलों के लिए यह करना इतना आसान नहीं होगा।
No comments:
Post a Comment