लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ने काल का एक चक्र पूरा कर लिया है। 1965 में भारतीय जंनसंघ के विजयवाडा अधिवेशान में बच्छराज व्यास जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। इससे पहले वे महाराष्ट्र प्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष भी रह चुके थे। बच्छराज व्यास नागपुर के रहने वाले थे। नागपुर में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्य कार्यालय है। आज लगभग आधी शताब्दी के बाद उसी नागपुर से नितिन जयराम गडकरी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने है। भारतीय जनता पार्टी को जनसंघ का अवतार ही माना जाता है। श्री व्यास ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला में संस्कार ग्रहण किये थे और नितिन भी उसी पाठशाला के विद्यार्थी हैं। श्री व्यास महाराष्ट्र विधान परिषद् के सदस्य रहे थे और गडकरी भी उसी परिषद् के सदस्य रहे हैं। जिन दिनों बच्छराज व्यास को भारतीय जनसंघ की कमान सौंपी गयी थी, उन दिनों देश में कांग्रेस के एकछत्र साम्राज्य से रूख्सत होने का वातावरण बन चुका था और 1967 तक आते आते देश के अनेक प्रांतों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन भी हो गया था। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि एकात्ममानववाद की जिस विचारधारा को भारतीय जनता पार्टी अपना आधार मानकर चलती है उसकी विवेचना और स्वीकृति विजयवाडा के उसी अधिवेशन में हुई थी जिसमें व्यास को पार्टी का उत्तरदायित्व सौंपा गया था और उन्होंने इसकी गहन व्याख्या भी की थी। उनके अनुसार- हम एकात्म मानववाद की कल्पना के पुजारी हैं। हम जन-जन में व्याप्त अभाव को कठिन परिश्रम की खेती से जन जन की समृद्वि में बदलने के लिए प्रयत्नशील हैं।
तब बच्छराज व्यास ने एक चेतावनी भी दी थी। उनके अनुसार-कुछ लोग सांठ गांठ की राजनीति से कांग्रेस का पर्याय पैदा करना चाहते है। किन्तु हमें कांग्रेस का पर्याय नहीं बल्कि उस द्वारा पैदा की गई समस्याओं का निराकरण करने वाला सशक्त दल चाहिए। ऐसा दल उपर से नहीं बल्कि जनता में से ही विकसित होगा और उसी से शक्ति ग्रहण करेगा। बिना इस शक्ति से जोड तोड निरर्थक सिद्व होगी। भारतीय जनसंघ के सिद्वांतों की जडें भारत की पवित्र भूमि में गहरी गडी हैं। हमें अपने कार्य को भी जनता में गहरे ले जाना होगा। तभी तो हम उसके सुख दु:ख को समझ सकेंगे और उसके सुख में स्वयं भी आन्नद का अनुभव करेंगे।
व्यास जी का यह उद्बोधन एक प्रकार से भारतीय जनसंघ के लिए बीज मंत्र का महत्व रखता था। इतिहास इस बात का गवाह है कि जिन जिन क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी शक्ति बढाये बिना अन्य दलों से समझौता किया वहाँ उसकी छवि ही धूमिल नहीं हुई बल्कि कार्यकर्ता हतोत्साहित हुए। अलबत्ता सत्ता के दलालों ने अवश्य खुशियॉ मनाई। बीज मंत्र की एक शर्त भी होती है। वह यह कि उसका उच्चारण शुद्व होना चाहिए। अशुद्ध उच्चारण से लाभ के स्थान पर नुकसान हो जाने की संभावना ज्यादा होती है। भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ वर्षों से केन्द्र में और प्रदेशों में भी सत्तारूढ थी या अभी भी है। सत्ता के बारे में अपने शास्त्रों में कहा गया है कि वह बहुत खतरनाक किस्म का नशा है। इसलिए इसमें विचरकर भी संतुलन बनाये रखने के लिए बहुत कठिन साधना की जरूरत होती है। भारतीय जनता पार्टी का यह संतुलन बीच बीच में डगमगाया है और बीज मंत्रों के अशुद्व उच्चारण से अर्थ का अनर्थ हुआ है। उसका खामियाजा भाजपा को ही नहीं बल्कि देश को भुगतना पडा है क्योंकि देश कांग्रेस के मुकाबले में भाजपा से उसी प्रकार की उम्मीद लगाये हुए था जिसका जिक्र उपर बच्छराज व्यास ने किया है।
क्या यह महज संयोग ही है कि व्यास के अध्यक्ष बनने के लगभग आधी शताब्दी बाद नागपुर के नितिन गडकरी को ही भाजपा की कमान संभालनी पडी है या फिर इसमें भूतकाल से सबक लेकर भविश्य की राजनीति के संकेत छिपे हुए हैं? गडकरी को व्यास के उन्हीं सूत्रों को पकडकर आगे की यात्रा शुरू करनी होगी जिसका संकेत विजयवाडा अधिवेशन में मिला था। परन्तु दुर्भाग्य से आज लगभग सभी राजनैतिक दलों ने वैचारिक आधार भूमि को दरकिनार कर सांठ गांठ के माध्यम से सत्ता प्राप्ति के सिद्वांत को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उसका औचित्य सिद्व करने के लिए अनेक तर्क भी गढ लिये हैं। सांठ-गांठ की राजनीति करने वाले अनेक दल या तो क्षेत्रीय हैं या फिर जाति आधारित। उनका एक मात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति है। अपने इस उद्देश्य को महिमामंडित करने के लिए उन्होंने विचारधारा से निरपेक्ष सुशासन अथवा विकास का एक नया सिद्धांत गढ लिया है। भाजपा के भीतर भी कहीं-कहीं इसकी चर्चा सुनाई देती है। पिछले दिनों लोकसभा चुनावों में हुई हार के बाद तो इसका स्वर भी तेज होने लगा था। इससे वे लोग तो संतुष्ट हो सकते हैं जिनका मकसद येन केन प्रकारेण कांग्रेस का विकल्प बनना ही है, लेकिन भाजपा के देश भर में फैले उन लाखों कार्यकर्ताओं को निराशा होती है जो यह मान कर चलते है कि भारतीय जनता पार्टी अन्य दलों की तरह कोई साधारण राजनैतिक दल नहीं है, बल्कि यह इस देश में भारतीयता के पक्ष में लडा जाने वाला राष्ट्रीय आंदोलन है। सत्ता प्राप्ति इसका मकसद नहीं है बल्कि सत्ता उस बडे वैचारिक मकसद को पूरा करने का माध्यम मात्र है।
नितिन गडकरी ने इस संक्रमण काल में भाजपा की कमान सम्भाली है। इससे आशा बंधती है कि भाजपा के भीतर की जडता भी टूटेगी और गणितीय सूत्रों पर चलने वाली राजनीति भी बदलेगी। यही कारण है कि गडकरी के आने से भाजपा के आम कार्यकर्ता में उत्साह का संचार हुआ है और उनमें नयी आशा जागी है। राश्ट्र्ीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने किसी पत्रकार सम्मेलन में भारतीय जनता पार्टी से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाने पर एक बडी सार्थक टिप्पणी की थी। उनका कहना था कि भाजपा की असली शक्ति देश भर में फैल उसके लाखों कार्यकर्ताओं में है, जो बिना किसी स्वार्थ के राष्ट्र साधना कर रहे हैं। जब तक यह शक्ति सुरक्षित है तब तक भाजपा का भविष्य भी सुरक्षित है और जाहिर है देश का भी।
वास्तव में कार्यकर्ताओं की यह शक्ति ही नितिन गडकरी का सबसे बडा सम्बल है। इन्हीं के बलबूते गडकरी भाजपा के भीतर कुछ स्थानों पर हो रही फूड पोआइजनिंग का इलाज कर सकते हैं। यदि शरीर का इम्युन सिस्टम ठीक रहे तो बाहर से आ रही बिमारियों से लडा जा सकता है। भाजपा के लाखों कार्यकर्ता इसी इम्युन सिस्टम की कोशिकाएं हैं। गडकरी को केवल इन्हें उत्साहित और आशान्वित करना होगा। बच्छराज व्यास की कर्म भूमि से जुडे गडकारी ऐसा कर सकते हैं। उनके इसी प्रयोग पर भाजपा का भविष्य निर्भर करता है।
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