गोंपद गांव की रहनेवाली आदिवासी महिला सोडी संभो का कहना है कि वर्दी में जो आए थे वे पुलिस थे या नक्सली मुझे नहीं मालूम कि उन्हीं की गोली से मेरे पैर में गोली लग गई।
गौरतलब है कि गत 1 अक्टूबर को गोंपद गांव की रहनेवाली आदिवासी महिला सोडी संभो को वर्दी में आए नक्सलियों के बंदूक से पैर में गोली लग गई, जबकि कुछ मीडिया रिपोर्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे नक्सली नहीं बल्कि पुलिस के वेश में पुलिस ही थे।
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज करवा रहीं सोडी संभो से ‘प्रवक्ता’ के प्रतिनिधि ने आज बातचीत की। संभो अपने पति और सात साल की बेटी नागी के साथ प्रसन्नचित्त मुद्रा में मिली। बातचीत के दौरान उसने बताया कि वर्दी में जो आए थे वे पुलिस थे या नक्सली मुझे नहीं मालूम कि उन्हीं की गोली से मेरे पैर में गोली लग गई। उसने आगे बताया कि कुछ समाजसेवी दवा और इलाज के नाम पर मुझसे अंगूठा लगवाए। अब पता चल रहा कि उन्होंने मेरी तरफ से कोर्ट में रिट दायर किया है कि मैं पुलिस की निगरानी में हूं। जबकि अपने रिश्तेदार और पति के साथ मैं यहां एम्स में इलाज करवा रही हूं।
इलाज के पैसे के बारे में पूछे जाने पर संभो अपनी भाषा गोंडी में बताती है, ‘मैंने अपने समुदाय के लोगों से चंदा करके इलाज के पैसे का बंदोबस्त किया है।’ इन सब बातों के बावजूद वह मीडिया से खास नाराज हैं। उसका कहना है कि मीडिया और तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मेरी शांति भंग कर दी हैं।
दूरभाष से संपर्क करने पर दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्रा, जो अपने विभाग में सोशल पाुलिसिंग के लिए अधिक और पुलिसिंग के लिए कम जाने जाते हैं, ने बस इतना बताया कि इस मामले में जांच जारी है।
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