वैसे तो यमलोक में अनगिनत ऐसी आत्माएं हत्या, आत्महत्या का शिकार हो प्रेतयोनि में बरसों से अपने फैसले के इंतजार में बैठी हैं कि कब जैसे उनका फैसला यमराज करें और वे प्रतयोनि से मुक्त हो जिस योनि में उनका हक बनता है उस योनि में जन्म ले यमपुरी के भयावह दृश्यों से मुक्त हों। पर यमराज की भी अपनी विवशता है। बेचारे वे तो चाहते हैं कि बंदे अपनी मौत मरकर मृत्युलोक से आती रहें और वहां पर फैसले के तुरंत बाद अपने कर्मों के आधार पर अगला जन्म लेती रहें ताकि यमलोक में भी रष न हो, कोलकाता की तरह। पर उनके चाहने से क्या होता है? जिनके अभी भी बरसों से मृत्युलोक की अदालतों में फैसले हो ही नहीं पाए तो वे उनके फैसले अपनी अदालत में कैसे करें?
ऐसे हजारों चेहरे मायूस होकर मेरे देश की अदालतों की ओर टकटकी लगाए यमलोक से देख रहे हैं। उनमें एक लड़की भी है। प्रेस फोटोग्राफरों से लेकर नाई की दुकान पर मूंछ मुंडवाने आए पाठकों को अखबार में आज के दौर में लड़की की फोटो के अतिरिक्त कुछ और दिखता ही नहीं। अब अखबार तो बेचना है भैया! पढ़ने के लिए अखबार कम ही तो बिकता है। सो मेरे साठ के पास पहुंचे मित्र प्रेस फोटोग्राफर रोज एक फोटो जरूर छापते हैं जैसे- अगर धूप निकल आई हो तो खिलखिली धूप का आनंद लेती लड़की। अगर बारिश हो रही हो तो- बारिश में भीगने का आनंद लेती हुई लड़की। अगर गर्मी पड़ रही हो तो- गर्मी में पसीना-पसीना होती लड़की। होली हो तो- होली के रंग में रंगी लड़की। दीवाली हो तो- पटाखे चलाती लड़की। लोहड़ी हो तो- लोहड़ी के गीत गाती लड़की। अब तो कई बार लगने लगता है कि जिस दिन अखबार में कुछ न कुछ करती हुई लड़की का फोटो न छपा हो तो जैसे अखबार कोरा ही हो।
तो वह लड़की बरसों से उदास सी यमलोक के एक कोने में बैठी थी, अदालत से अपने फैसले का इंतजार करती। यह सोचती कि- अगर मैं आत्महत्या के बाद एकदम पुन: जन्म ले लेती तो आज अपना केस खुद लड़ती। फैसले के इंतजार में इतने साल खराब कर उसने बहुत बड़ी गलती की। ……….और अदालत थी कि बरसों बीत जाने के बाद भी वहीं का वहीं। वही दाव पेंच। वही धन का बल। वही पद का बल। अदालत दलीलों के आगे निर्बल।
अगर गलती से मेरे प्रेस फोटोग्राफर मित्र वहां पहुंचने की हड्डियों में हिम्मत रखते तो फोटो छाप मारते- यमलोक के एक कोने में उदास बैठी लड़की। पर बेचारे अब तो पार्क लेडीज पार्क तक ही चल पाते हैं।
…… कि एकाएक पता नहीं क्या हुआ कि वह बरसों से उदास लड़की हंसने लगी। बरसों मौका मिलते ही यमराज ने भी उसे हंसाने कि बहुत कोशिश की थी पर वह नहीं हंसी तो नहीं हंसी। ज्यों ही यमलोक के कर्मचारियों ने यमराज को उसके हंसने की सूचना दी सूचना दी तो वे सारे काम काज छोड़ उस हंसती हुई लड़की के पास जा पहुंचे। उन्होंने देखा कि सच्ची को लड़की हंस रही है। पहली बार उन्होंने किसी लड़की को हंसते हुए देखा। नहीं तो उन्होंने अधिकतर वे लड़कियां ही देखी थीं जो मां के गर्भ में जाते ही रोना शुरू कर देती हैं और रोती हुईं ही पैदा होने से पहले उनके पास उदास चेहरे लिए या फिर दहेज की बलि चढ़ अधजली उनके पास पहुंच फिर रोते रोते कहतीं, ‘हे यमराज! अगले जनम हमें बेटा ही कीजौ!’
‘सभी आत्माएं अगर बेटा ही बनने का निवेदन करने लगीं तो तो सृष्टि चलेगी कैसे?’
‘ये हमें नहीं पता। नहीं तो हम वहां नहीं जाएगीं आपकी कसम।’
उसे खिलखिला कर हंसते हुए देखने के बाद यमराज ने उससे पूछा, ‘बिटिया! आज ऐसा क्या मिल गया जो तुम यों हंस रही हो?’
वह बिन कुछ कहे काफी देर तक हंसती रही। बरसों से हंसी जो नहीं थी। उसको हंसते देख यमराज ने जिनको नरक की सजा सुनाई थी वे भी नरक की यातनाओं को भूल हंसने लगे थे। उस लड़की ने तब अपनी हंसी रोक कहा, ‘अब मुझे न्याय मिलने की आशा फिर जगी है।’
‘बहुत बहुत बधाई! तुम सयानी हो तो एक बात बताओ?’
‘कहो अंकल!!’
‘जब तुम्हें वहां पर न्याय मिल जाएगा और हम भी तुम्हें यहां से मुक्त कर देंगे तो तुम कहां अगला जन्म लेना चाहोगी?’
‘अंकल! मुझे नरक दे दीजौ पर इंडिया न दीजौ!
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