मध्यप्रदेश में हुए 2008 के विधानसभा चुनाव में जनादेश प्राप्त कर चुकी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के चार वर्ष अभी बाकी है। 365 दिन समाप्त हो चुके हैं। प्रदेश में राजनीतिक परिवर्तन तो 2003 में संपन्न विधानसभा चुनाव में हो चुका था। इस बार शिवराज सिंह चौहान दूसरी पारी खेल रहेहैं। लोकतंत्र के आविर्भाव के पश्चात पहली बार अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाली भाजपा सरकार की चुनौतियां सर्वाधिक रही है। पहले तो यह कि उसे तेजी से विलुप्त हो रही राजनीतिक संस्कृति, प्रतिबध्दता और विश्वसनीयता से दो चार होना पड़ा। क्योंकि सरकारें आती हैं, वायदे करती हैं और अपने शब्दों का अवमूल्यन कर विदा हो जाती हैं। पार्टी को अपनी विशिष्टता को साबित करना पड़ा। हालांकि पांच दशकों की विफलताओं को पांच वर्षों में समाप्त करने का काम तिलिस्म नही हो सकता है। तथापि हवा में उड़ता तिनका हवा की दिशा का संकेत अवश्य देता है। शिवराज सिंह चौहान के दूसरे 365 दिन के कार्यकाल पर दृष्टि डालने से भरोसा होता है कि अब तंत्र की धुरी जन बन गया है। आम आदमी उतना निरीह असहाय नहीं है जितना हुआ करता था। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में एक सुखद मौन क्रांति परिलक्षित होती है। मुख्यमंत्री की छवि प्रदेश के प्रथम सेवक की बनी है। किसान उन्हें अपना सरपरस्त मानता है। महिला का सशक्तीकरण होने, स्थानीय निकायों में बराबरी की भागीदारी मिलने और सेवा सुविधाएं मिलने से उनके प्रतिअनुरक्त है। बच्चे-बच्चियों को सरकारी प्रोत्साहन के द्वार खुल जाने से तो शिवराज सिंह चौहान में वे मामा की छवि खोजते हैं। जन सुनवाई जनदर्शन से जैसे कार्यक्रमों ने मुख्यमंत्री को श्यामला हिल्स से निकालकर उन्हें गांव की पगड़ंड़ियों से होते हुए चौपाल पर पहुंचा दिया है। मध्यप्रदेश को बीमारू राय की श्रेणी से निकालकर मध्यप्रदेश को एक विकास के ब्रांड के रूप में पेश करने के कार्य के लिए जिस जीवट की जरूरत है, उसमें शिवराज सिंह चौहान सफल हुए हैं। इस बात का मूल्यांकन ऐरे गैरे व्यक्ति का नहीं खुद देश के योजना आयोग का है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय मध्यप्रदेश को ग्रामीण विकास का मॉडल मानने के लिए विवश हो गया है। यह बात अलग है कि राय में विपक्ष को यह सब रास नहीं आ रहा है। मध्यप्रदेश में जवाहरलाल नेहरू शहरी विकास कार्यक्रम के अमल पर डॉ. मोन्टेक सिंह अहलूवालिया ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रशंसा-पत्र लिखकर पीठ थपथपायी है। योजना के क्रियान्वयन में जहां राष्ट्रीय औसत 53.72 प्रतिशत है, मध्यप्रदेश ने 67 प्रतिशत उपलब्धि अर्जित कर अव्वल स्थान बनाया है।
शिवराज सिंह चौहान की कोशिश आम आदमी से तंत्र को जोड़ने की रही है, जिससे उसे सुशासन का अहसास हो सके। भारतीय जनता पार्टी ने शुरु से स्वराज से सुराज तक पहुंचाने का वायदा किया है। सही अर्थों में शिवराज सिंह चौहान इसे धरातल पर उतारने की कटिबध्दता के साथ आगे बढ़े हैं। प्रदेश में जन दर्शन, लोक कल्याण शिविर जैसे कार्यक्रमों से सरकार एक साथ आम आदमी से रू-ब-रू हुई है। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने जन सुनवाई कार्यक्रम आरंभ किया, इस कार्यक्रम में राय प्रशासन की तमाम खमियां और कानूनों की जटिलताएं उजागर कर दीं। समस्याओं से पलायन करना शिवराज का स्वभाव नहीं है। जनसुनवाई के दौरान गृह निर्माण समितियाें में मची आपाधापी की ओर उनका ध्यान गया। वर्षों से गरीब, मध्यमवर्ग परिवार अपने मकान का सपना साकार करने के लिए गाढ़ी कमाई का पैसा गृह निर्माण समितियों में जमा किए हुए। जूते घिसते घूम रहे थे और कहीं भी उन्हें राहत की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। ऐसे समय में जन सुनवाई शिविर वरदान बन गया। प्रदेश व्यापी अभियान चलाया गया और हजारों व्यक्तियों को उनके आवासीय भूखण्ड मिले, जहां भूखण्ड मिलने में परेशानी हुई, उनकी राशि पाने में वो सफल रहे।
मध्यप्रदेश कृषि प्रधान प्रदेश है। आर्थिक उदारीकरण के बाद किसानों को मिलने वाली सुविधाएं घटती गयीं और लागत में वृध्दि हुई। जिससे अन्य प्रदेशों की तरह मध्यप्रदेश में भी खेती के व्यवसाय से पलायन की स्थिति बन गयी। किसान का बेटा होने के कारण शिवराज को समस्या की गंभीरता समझने में देर नहीं लगी उन्होंने ताबड़तोड़ किसानों को मिलने वाले कर्ज पर लगने वाले ब्याज को 18 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया। ऋण ग्रस्तता का आंशिक बोझ इससे कम हुआ। प्राकृतिक आपदाओं, आसमानी सुलतानी मुसीबत के समय मिलने वाली राहत को कई गुना बढ़ा दी गयी है। किसानों को समर्थन मूल्य पर बोनस देने की शुरुआत की गयी। गेहूं, धान पर मध्यप्रदेश सरकार ने क्रमश: 100 रु. और 50 रु. क्विंटल का बोनस भारतीय जनता पार्टी सरकार का किसानों को उपहार है। बिजली के बिलों में राहत देने के लिए 4600 करोड़ रु. की सब्सिडी दी गयी। प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में किसानों को राहत पहुंचाने के लिए सूखा राहत के नियम उदार किए गए और प्रदेश सरकार ने अपने खजाने से 500 सौ करोड़ रुपये की राहत किसानों को वितरित की। मध्यप्रदेश में नवम्बर, 2008 में भारतीय जनता पार्टी सरकार की कमान संभालते ही शिवराज ने पार्टी के घोषणा-पत्र को सरकार का नीतिगत दस्तावेज साबित किया और उसे अमली जामा पहनाने की जवाबदेही राय सरकार को सौंप दी। फलत: प्रदेश में विभागवार 100 सौ दिन एक वर्ष और पांच वर्ष की योजनाओं पर द्रुतगति से कार्य आरंभ करने का श्रेय उन्हें हासिल हुआ।
शिवराज सिंह चौहान ने एक सहज, सरल राजनेता के अलावा एक कठोर शासक के रूप में भी अपनी छवि बनाई है जिसके कारण प्रदेश में भू-माफिया, मिलावटी माफिया और शिक्षा माफिया की कमर टूटी है। भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है। आजादी के बाद नियमों, कानूनों के सरलीकरण की बातें कमोबेश हर सरकार ने की है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने अपनी खमियां खुद खोजने का साहस दिखाया और राजनेताओं, वरिष्ठ प्रशासकों के साथ बैठकर कई दिनों तक मंथन किया। इस मंथन में अवश्य ही वह अमृत निकलेगा, जिससे प्रशासन के संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को शीतल स्पर्श का अनुभव होगा। मंथन के आधार पर जनता की प्रशासन में भागीदारी बढ़ेगी और आने वाले दिनों में जनता की परेशानियां कम होंगी। उसे अहसास होगा कि प्रदेश में जनोन्मुखी, संवेदनशील और पारदर्शी सरकार है। किसान, मजदूर, मेहनतकशों के साथ ही समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं बचा जिसकी पंचायत बुलाकर शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास में उसके लिए पलक पांवड़े न बिछाये हों। उनकी बात सुनी गयी और उनके आधार पर नीतियों का ताना बाना बुनने की शुरुआत हुई जिससे साबित हो गया कि शिवराज सिंह चौहान वायदे के पक्के और इरादे के मजबूत हैं।
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