Monday, January 25, 2010

हम और हमारा गणतंत्र

मरते मिटते रहते कई दंगों में, मरना हो तो वतन पे मरो

वतन की मौत बड़ी रंगीन होती है

पैरों से ना रौंदों माथे से लगा लो देश की मिट्टी तो सिंदूर होती है
हम गणतंत्र दिवस की 61 वी वर्षगांठ मना रहे हैं…यूं तो हमें आजादी 15 अगस्त को ही मिल गई थी लेकिन 26 जनवरी 1950 तक हम भारतीयों के शोषण युक्त कलम से लिखे संविधान के अनुसार ही चलते रहे। किसी भी देश के संविधान का ना होना उस देश की रीढ़ की हड़्ड़ी ना होने के समान है,.यानी कि हमें असली आज़ादी 26 जनवरी को मिली जब हमारे देश के नेताओं ने वर्षों से भारतीयों के शोषण युक्त कलम से लिखी इबारत को तोड़कर अपना संविधान लागू किया। लेकिन अंधानुकरण के इस दौर में गणतंत्र सिर्फ ‘धन’ और ‘गन’ का तंत्र बन कर रह गया है..जिस गणतंत्र पर सारे भारतीयों को गर्व है उसी की धज्जियां सरे आम उठाई जा रही है। और इस घिनौने काम को अंज़ाम दे रहे हैं हमारे ही बीच के कुछ तथाकथित नेता जिनके लिए इस संविधान का मतलब सिर्फ कागजों पर लिखी चंद पंक्तियों से ज्यादा और कुछ नहीं है। हमारा गणतंत्र हमारे लिए उस धुरी की तरह से जिसके चारों और देश का पहिया चक्कर लगाता है। गणतंत्र का मतलब है ‘ जनता का तंत्र जनता के लिए’ अर्थात् इस संविधान में सर्वोपरि है जनतंत्र पर क्या मौज़ूदा हालातों के बाद कहा जा सकता है कि इस जनतंत्र(गणतंत्र) में जनता का सर्वोपरि स्थान आज भी वैसा ही मौज़ूद है जिसकी परिकल्पना हमारे राष्ट्र भक्त शहीदों और नेताओं ने की थी। तमाम प्रयासों के बाद आज भी देश की जनता के पास अगर कुछ है तो सिर्फ एक मूकदर्शक की सीमा, बुरा मत देखों बुरा मत सुनों ,बुरा मत कहो की तर्ज पर आज हमारे पास है बुरा देखने की बुरा सुनने की लेकिन उस बुराई का प्रतिवाद नही कहने(करने) की सीमा। जिस विदेशी भाषा, विदेशी विचार, और विदेशी तंत्र के लिए आवाजें उठाई गई उन आदर्शों के मायने बैमानी साबित हो रहे है। आज इस देश के गणतंत्र को खुली चुनौती दी रही है…पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवादियों को भेज कर हमारे देश की नींवों को खोखला करता जा रहा है, नक्सलवाद लगातार हमारी छाती पर अपने उपद्रवकी कीलें ठोकता जा रहा है…उसके बाद भी हमसे सिवाय ढ़िढ़ौरा पीटने के और कुछ नहीं हो पा रहा है…हमारे पास सिवाय दूसरों के समाने हाथ फैलाकर चिल्लाने के आलावा कोई रास्ता ही नहीं होता…

आखिस क्यों हम ये भूल रहे हैं कि शांति दूत गांधी की इस धरती पर आज़ाद और भगतसिंह ने भी जन्म लिया है…।आइए इस गणतंत्र दिवस की पावन बेला पर एक बार फिर से इस देश को बापू के सपनों का भारत बनाने की कोशिश शुरू करें। आइए जातिवाद को छोडकर एक बार फिर से कमजोर पड़ चुकी देश की नींव को मजबूत करें।कम से कम यह एक सच्ची श्रद्धांजलि तो होगी उन अमर शहीदों की….

तुम हो हिन्दू तो मुझे मुसलमां जान लो

तुम हो गीता तो मुझे कुरान मान लो

कब तक रहेगें अलग अलग और सहेगें ज़ुदा ज़ुदा

मैं तुम्हें पूंजू , तुम मुझे अज़ान दो

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