जंगल में भी होंगे चुनाव, पशुओं में यह आस जगी।
स्वयं सिंह जो बना है राजा
उसको अब हटना होगा,
गीदड़ बोला मैं प्रत्याशी
शेर को मुझसे लड़ना होगा।
जंगल में चुनाव आयोग बैठाया गया
हाथी दादा को आयोग प्रमुख बनाया गया,
कुछ नियम-कानून बनाए गए,
आयोग द्वारा सब पशुओं को सुनाए गए।
जिस-जिस को लड़ना है वह हो जाए तैयार
जंगल में इस बार बनेगी लोकतन्त्र सरकार,
लोकतन्त्र सरकार, सिंह न केवल राजा होगा
सिंहासन मिलेगा उसको, जिसको पीछे बहुमत होगा।
चुनाव की होने लगी तैयारी
पर सिंह को यह लगने लगा भारी।
सबके सामने वह हो गया तैयार, पर
चुपचाप लगाई उसने बिरादरी में गुहार।
सिंह, बाघ, चीता, तेन्दुआ आदि
सबके यहां सन्देशा भिजवाया गया
स्वयं सिंह द्वारा उन्हें बुलवाया गया।
जब भीड़ हो गई जमा
तो सिंह गंभीर होकर बोला-
भाइयों,
आज अस्तित्व पर संकट आया है,
हमारे सिंहत्व पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया है।
अरे भाई बाघ और तेन्दू,
आप सब अपनी बिरादरी के हैं,
चीता सहित हम सभी एक ही जाति के हैं,
मिलकर चुनाव लड़ेंगे,
अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे।
तभी तेन्दुआ बीच में ही बोला,
अपना मुंह धीरे से उसने खोला,
कहा-पहले वोट बढाइए,
बिल्ली भी स्वजातीय है,
बैठक में उसे भी बुलाइए।
तुरन्त बिल्ली बुलवाई गई,
सबके द्वारा उसकी स्तुति गाई गई।
बीच में बिल्ली को सिंह ने एकटक निहारा
धीरे से उसके मुखड़े पर उसने पुचकारा।
कुछ मीठी, कुछ सकुचाती वाणी में सिंह बोला-
मौसी!!!!!!!!!!!!!!!!
तू कहां थी!
तुझसे तो पुराने सम्बंध हैं,
कद में है तू बस छोटी,
मिलते मुझसे तेरे सब अंग हैं।
अपने पूरे परिवार के साथ जंगल में
कह दे कि तू मेरे संग है।
बिल्ली, तेन्दू, चीता, शेर और बाघ
जंगल में शुरू हो गया जातिवाद।।
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जैसे ही हुई भोर,
गीदड़ ने मचाया शोर
शेर कर रहा है जातिवाद
चुनाव आयोग से मैं करूंगा फरियाद,
लेकिन तभी उसके समीप
एक कुत्ता आया,
साथ में लोमड़ी, लकड़बघ्घे
और भेड़िए को भी लाया।
कुत्ता बोला,
बिरादर! हम भी जातिवाद करेंगे
जो हो, शेर को जीतने नहीं देंगे,
तुम आयोग में शिकायत भिजवाओ
साथ में जातिवाद का बवण्डर चलाओ।
भीषण जातिवाद देखकर,
रेंकने लगा जंगल का गधा,
क्योंकि
उसने भी था पर्चा भरा।
सोचने लगा,
मैं कैसे जातिवाद चलाऊं,
आखिर किसके पास जाऊं।
अचानक उसे ध्यान में आया
घोड़े, खच्चर और जेब्रा,
पानी में रहने वाला दरियाई घोड़ा,
ये सब तो मेरे ही स्वरूप हैं,
मेरी जाति वाले भी मजबूत हैं।
अब नहीं कोई चिन्ता,
बजने दो चुनावी डंका।
नामांकन का दिन गया बीत,
वोटिंग के दिन पास आ गए,
गधा, गीदड़ और शेर बने प्रत्याशी,
तीनों जंगल में छा गए।
अन्य सभी पशुओं ने वोटर
बनना स्वीकार किया,
किन्तु कुछेक पशुओं ने
चुनाव का बहिष्कार किया।
हिरन गले में तख्तियां लटकाए,
अपने लिए जंगल में,
पृथक ग्रासलैण्ड की
मांग कर रहे थे।
शेर, गधा और गीदड़
बारी-बारी से उनके
पास वोट की फरियाद कर रहे थे।
प्रत्याशी सभा में ‘जंगल सुरक्षा’
के सवाल पर सिंह दहाड़ा,
प्रचार में उसने सबको पछाड़ा।
शेर बोला, प्यारी हिरनों!
यदि मैं सत्ता में आया,
तो तुम्हें पूरी सुरक्षा दिलवाउंगा,
पृथक ग्रासलैण्ड के निर्माण के साथ,
एक शेर वहां चौकीदार बिठाऊंगा।
लेकिन अपने भाषण में
गधे ने हिरनों को समझाया,
भाइयों-बहनों, सावधान रहना,
चौकीदार शेर छुप-छुपकर
एक-एक को हजम कर जाएगा।
पृथक ग्रासलैण्ड तुम्हारे अस्तित्व की
समाप्ति का कारण बन जाएगा।
उपाय मेरे पास है, मैं सत्ता में आया
तो….इतने में गीदड़ मंच पर लपक आया।
वोट मांगते हुए बोला,
आपको सुरक्षा हम दिलवाएंगे,
गधे ने तत्काल उसे फटकारा,
उसने सबके सामने उसे लताड़ा।
गधा बोला-गीदड़ का चरित्र संदिग्ध है।
यह शेर से मिला हुआ है,
सुरक्षा के सवाल पर गीदड़ और शेर
आप सभी को बरगलाएंगे,
मेरा मानना है कि
ये दोनों मिलकर जंगल को खा जाएंगे।
इस प्रकार होने लगा प्रचार।
तीनों पक्षों में शुरू हुई तकरार।
प्रचार अभियान के सिलसिले में
शेर मधुमिक्खयों के पास पहुंचा।
मधुमिक्खयों की रानी के पास
उसने सन्देशा भेजा।
बहन, सुना है भालू
शहद के लिए तुम्हारे छत्ते
भंग करते हैं,
रह-रहकर पूरे परिवार सहित
तुम्हें तंग करते हैं।
परेशान ना हो,
मुझे वोट दो,
मैं भालुओं को दुरूस्त करूंगा,
तुम्हारी सुरक्षा मजबूत करूंगा।
उधर भालुओं के पास जाकर
सिंह ने पुचकारा
सबको बुलाकर कान में फुसकारा,
भालू भाइयों, तुम्हारे लिए शहद
के सारे छत्ते आरक्षित किए जाएंगे।
मेरे जीतने पर जंगल में शहद के
सारे लाइसेंस तुम्हें ही दिए जाएंगे।
आ गया वोटिंग वाला दिन
पशु सब निकल पड़े।
वोट देने के लिए
घर से सब चल पड़े।
वोटिंग में गधे का पक्ष होने लगा भारी
क्योंकि अचानक एकजुट हो गए शाकाहारी।
शाकाहारी पशुओं ने ठीक ही सोचा,
शेर तो मांसाहारी है और गीदड़ का क्या भरोसा।
गधा ठीक है, ये कोई
नुकसान तो नहीं ही कर पाएगा,
किसी आक्रमण के समय कम से कम,
आगे होकर ढेंचू-ढेंचू तो चिल्लाएगा।
गधे के पक्ष में चुनाव जाता देख,
क्रुद्ध सिंह ने ललकारा,
चीता तुरन्त हरकत में आया,
उसने दिया सिंह को सहारा,
बोला-
ये शाकाहारवाद यहां नहीं चलने देंगे।
सारे बूथों को बाहुबल से कैप्चर कर लेंगे।
जंगल में हो गया हंगामा
पशुओं में पड़ गई दरार,
अलग-अलग हो गए खेमे
एक शाकाहारी, दूजा मांसाहार।
सिंह ने दिया आदेश,
बूथों पर कब्जा कर लो,
जहां मिले गीदड़ और गधे
उनको वहीं दबोचो।
तेन्दू, बाघ और चीते ने
मिलकर किया प्रहार,
सारे बूथ कब्जे में
बन गई सिंह की सरकार।
बनी सिंह की सरकार, सिंह आ गया विजयी मुद्रा में
बोला, लोकतन्त्र नहीं, जंगल कानून चलेगा जंगल में।
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जंगल में जुटी विजय सभा,
सिंह ने किया गर्जन,
स्वागतोपरान्त, सिंह ने दिया
अपना प्रथम राजकीय भाषण।
विजयी सिंह ने विराट जनसभा में
सर्वप्रथम चुनाव आयोग को ललकारा,
आयुक्त हाथी दादा को उसने
खुले आम जमकर फटकारा।
सिंह बोला-सुन लो हाथी दादा,
जंगल में आयोग के जन्मदाता,
आयोग भंग किया जाता है,
जाओ मौज करो जाकर, क्योंकि
कुछ मर्यादा है, अत: तुम्हें
बंधन-मुक्त किया जाता है।
लेकिन गीदड़ और गधे
कदापि छोड़े नहीं जाएंगे,
हर कीमत पर उनके
प्राण अवश्य लिए जाएंगे।
सिंह ने फिर दर्शन झाड़ा,
मनुष्यों पर भी गुस्सा
उसने उतारा।
कहने लगा-
लोकतन्त्र मनुष्यों का
उन्हें ही मुबारक हो भाई,
गधे और गीदड़ भी लड़ते चुनाव
आखिर यह कैसी पद्धति आई।
यह तो प्रकृति विरूद्ध है,
इसी से सम्पूर्ण विकास अवरूद्ध है
जिसका जितना संख्याबल,
लोकतन्त्र में बस उसी का बल!
भाइयों, यह खतरनाक निर्वाचन है!
क्योंकि हमारा तो कम संख्याबल है।
अब यदि आज मैं चुनाव हार जाता,
तो क्या मांस की जगह घास खाता!
चुनाव में झूठे नारों, वायदों से
अपना हित मैंने साधा,
मेरे अनुसार, लोकतन्त्र के विकास में
यह है सबसे बड़ी बाधा।
जो मैं कभी नहीं करता,
ऐसा मुझको कहना पड़ता था,
हिरनों की रक्षा, मधुमक्खी को भी
झूठा वायदा देना पड़ता था।
बोलो ऐसा लोकतन्त्र, क्या होगा कभी यहां सफल,
संख्या बल चले जुटाने, लेकर जातिवाद का संबल।
अरे, जिसमें जो गुण हैं, वह वैसे ही जिएंगे।
मांसाहार छोड़कर क्या हम तृण से पेट भरेंगे?
शाकाहारवाद चलाकर जो सत्ता पाने की सोच रहे,
हम उनके भरोसे ही जीवित हैं, क्यों वह भूल गए?
लोकतन्त्र का ही यह पुण्यप्रताप!
हिरनों ने मेरा उपहास किया,
पृथक ग्रासलैण्ड की मांग लिए
उन्होंने बहिष्कार का साथ दिया।
इसके पहले तो कभी नहीं,
हिरनों ने ऐसा कुछ मांगा था,
अधिकारों की बढ़ गई पिपासा
लोकतन्त्र ने ही अलगाव जगाया था।
गणतन्त्र नहीं यह समस्या तन्त्र है,
जंगलराज में यह चल नहीं सकता।
मानव जाति करे कुछ भी,
जंगल में लोकतन्त्र फल नहीं सकता।
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