नये वर्ष में केन्द्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को भारतीय जनता पार्टी दस ज्वलंत मुद्दों के माध्यम से घेरेगी। भाजपा नेता प्रकाश जावडेकर के हवाले से इस समाचार को पढकर लगा कि जिस प्रकार भाजपा ने इस नवीन वर्ष को ह्ढता का परिचय देते हुए एक संकल्प के साथ मनाने का निश्चय कियाहै, वस्तुत: यह उसकी राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक जरूर है।
भारतीय जनता पार्टी के राजनीति में प्रादुर्भाव के पीछे का हेतु आज कौन नहीं जानता। आखिर राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों को उठाने तथा उनमें आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए ही तो इस राजनीतिक पार्टी के निर्माण की आवश्यकता कांग्रेस के विकल्प के रूप में महसूस की गई थी। भाजपा ने जिन 10 मुद्दों की बात कही है। आज इन्हें पढकर या सुनकर किसी को अचरज नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारतीयजन के बीच भाजपा की स्वीकार्यता तभी तक है जब तक वह देश में व्याप्त ज्वलंत और अनेक वर्षों से चले आ रहे विवादास्पद मुद्दों के समाधान एवं उनके बीच के तार्किक व व्यवहारिक मार्ग खोजने में सिध्दाहस्त बनी रहेगी। भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान राजनैतिक यात्रा के पीछे का आखिर सच तो यही है कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खण्डेलवाल, राजमाता विजयाराजे सिंधिया जैसे लोगों की जो तपस्वी पीढी गुजरी है वह अपने कालखण्ड में ध्येयनिष्ठ होकर सदैव पार्टी को पुष्पित और पल्लवित करने में लगी रही। उनके लिए राजनीति साध्य को प्राप्त करने वाली साधना स्थली थी, जिसके माध्यम से वह भारत को एक शक्तिशाली उभरते राष्टन् के रूप में देखना चाहती थी।
फिर धारा 370 की बात, देश में समान आचार संहिता लागू करने तथा अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विवाद समाप्त करने का विषय हो। राष्ट्रीय अस्मिता तथा स्वाभिमान से जुडे अनेक मुद्दे रहे हैं, जिन पर सवार होकर भाजपा की अभी तक की राजनीतिक यात्रा गुजरी है। इस बीती पीढी की तपस्या का सुफल था कि केन्द्र में दो बार भारतीय जनता पार्टी को सत्ता की चाबी मिली, किन्तु इसे दुर्भाग्य कहेंगे कि भाजपा इस बात से चूक गयी कि चाबी हाथ से न फिसले। अभी 10 वर्षों के लिए हाथ से सत्ता निकली है और आगे का कुछ पता नहीं।
निश्चित ही ऐसे में भाजपा अपना मिशन 2010 फतह करने के लिए जिन 10 राष्ट्रीय मुद्दों को उठा रही है उनसे लगता है कि अब यही मुख्य बिन्दु पार्टी का आगामी भविष्य तय करेंगे। हमनें देखा कि बीती लोकसभा की कार्यवाही में भले ही भाजपा ने विपक्ष के नाते यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया था कि वह महंगाई, नक्सलवाद, आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं करने वाली। उसने अपनी ओर से कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठगंधन सरकार को सदन में घेरने की भरकस कोशिश की है, किंतु वह पूरी तरह सफल नहीं कही जा सकती, क्योंकि इसके बाद कोई कारण शेष नहीं है कि तेजी से बढती महंगाई, नक्सलवाद व आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाना संभव नहीं होता।
भोपाल प्रवास के दौरान लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का बयान महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा कि सदन में विपक्ष की भूमिका सरकार के प्रत्येक फैसले पर नजर रखना है। लोकतंत्र में सत्तापक्ष को शासक और विपक्ष को पहरेदारी की भूमिका निभाने का अवसर जनता देती है। हालांकि अभी तक केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कहीं से भी नहीं लगा कि भाजपा ऐसा कुछ कर पाई है, जिसके कारण सत्तापक्ष ने स्वयं पर दबाव महसूस किया हो। सरकार सदन में अपने संख्या बल के आधार पर जो निर्णय करना चाहती है कर लेती है। विपक्ष की भूमिका में भाजपा की आवाज सिर्फ मीडिया तक ही सीमित होकर रह गई है। वस्तुत: भारतीय जनता पार्टी सदन में या उसके बाहर केंद्र सरकार पर उस तरह का तीव्र दबाव नहीं बना पाई, जो आज देशहित में आवश्यक है।
महंगाई को चुनावों में पार्टी भुना नहीं पाई, जबकि सभी जानते हैं कि आवश्यक वस्तुओं की बढती कीमतों के लिए केन्द्र सरकार की नीतियाँ जिम्मेदार हैं। आज आतंकवाद की रोकथाम के लिए कौन नहीं चाहता कि टाडा या पोटा जैसा शक्तिशाली आतंकवाद निरोधक कानून देश में शीघ्र लागू किया जाये। इस विषय पर यदि गंभीरता से जनता की सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करते हुए भी निर्णय लिया जाए तो देश के कोने-कोने से यही आवाज बुलंद रूप से उभरेगी कि भारत की सम्प्रभुता को चोट पहुंचाने वाली किसी भी शक्ति को हिन्दुस्तान की धरती पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भारतीय संसद इसके लिए फिर कितना ही कडा कानून क्यों न पारित करे, वह जनता को स्वीकार है। इस मुद्दे को लेकर बीते पांच सालों के बाद आज तक भी भाजपा केन्द्र सरकार पर कोई दबाव नहीं बना सकी।
इसी प्रकार भारत के अन्य पडोसी देशों से आपसी सम्बन्धों की बात करें तो भारत ने अपने पडोसियों से कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा गंवाया ही अधिक है। चीन, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका या वर्मा कोई भी देश क्यों न हो। इन सभी ने भारत की कमजोर विदेश नीति का भरपूर फायदा उठाया है। भाजपा बीते सालों में विपक्ष की भूमिका में रहते हुये भारतीय जनता को यह संदेश भी नहीं दे सकी कि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार कितनी असफल सरकार है।
भाजपा ने जिन 10 मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने का संकल्प लिया है देखा जाय तो उनमें अधिकांश मुद्दे पुराने हैं, लेकिन सच यह भी है कि वह आज भी नए हैं, क्योंकि इन पर जितनी शक्ति के साथ विपक्षी पार्टियों को एकजुट होकर सरकार को घेरने का प्रयास करना था वह सामूहिक प्रयास अभी तक नहीं किया गया है। महिला आरक्षण की बात हो या 1984 के सिख विरोधी दंगे, कश्मीर स्वायत्तता सम्बन्धी आई हालिया रपट तथा सरकार की कार्यप्रणाली, देश में बढती किसान आत्महत्याएं, अल्पसंख्यकवाद, रंगनाथ मिश्र समिति की रिपोर्ट, पाकिस्तान से भारत के सम्बन्ध, पृथक तेलंगाना राज्य और आतंकवाद व नक्सलवाद जैसे मुद्दों को लेकर जागी भाजपा के लिए अब यही कहना होगा कि भारतीय जनता पार्टी जो केन्द्र सरकार को घेरने की योजना बना रही है, वह देर से ही सही, लेकिन सही दिशा में उठाया गया कारगर कदम जरूर है। वैसे भी हमारे यहाँ कहावत है सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते हैं।
हॉ! इसके अलावा एक यक्ष प्रश्न जरूर हैकि भारतीय जनता पार्टी द्वारा उठाये जा रहे मुद्दे सिर्फ विपक्षी पार्टी होने के कारण केवल उसकी ही जवाबदारी है? क्या अन्य राजनीतिक पार्टियों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह भी इस प्रकार के न केवल सदन में मुद्दे उठाएं, बल्कि देश में इन्हें लेकर जनजागरण चलाएं। इन राजनीतिक पार्टियों को क्यों नहीं लगता कि वह भी राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान से जुडे मुद्दे उठाकर भारत को शक्तिशाली सम्प्रभू राज्य बनाने में अपनी कारगर भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं। यह दस मुद्दे केवल भाजपा तक सीमित नहीं रहने चाहिए।
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