नई दिल्ली 09 जनवरी। सत्ता और संगठन में फेरबदल के लिए सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस आज भी पुरानी परंपराओं का बाकायदा निर्वहन कर रही है। भारतीय प्राचीन परंपराओं के अनुसार अच्छे काम के लिए पूस माह के बाद मकर संक्राति के बाद का समय शुभ माना जाता है। अत: कांग्रेस भी अपने ढांचे में फेरबदल के लिए इस शुभ घडी का इंतजार कर रही है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राजनैतिक पंडितों ने कांग्रेस की राजमाता श्रीमती सोनिया गांधी को मशविरा दिया है कि कांग्रेस के संगठन और सत्ता के केंद्रों में परिवर्तन के लिए 14 जनवरी के बाद का समय शुभ है।
अपने अंधविश्वासों के लिए प्रसिद्ध कांग्रेस के लिए अभी तीन राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति सबसे अहम मसला है। इसका कारण यह है कि गणतंत्र की स्थापना के पचास साल पूरे होने पर राजस्थान, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के राजभवन में स्थायी नियुक्ति इसलिए किया जाना अनिवार्य होगा, क्योंकि तीनों सूबों की राजधानी में लाट साहेब (महामहिम राज्यपाल) को गणतंत्र दिवस की परेड की सलामी भी लेना है। वर्तमान में इन सूबों के राजभवनों में अन्य प्रदेशों के लाट साहबों को अतिरिक्त प्रभार देकर बिठाया गया है। इसके आलावा महाराष्ट्र और पंजाब में भी राजभवन रिक्त होने वाले हैं।
राज्यपालों के मामले में प्रधानमंत्री की राय अपनी पार्टी की अध्यक्ष से कुछ जुदा समझ में आ रही है। पीएमओ के सूत्रों का दावा है कि वजीरे आजम डॉ. मनमोहन सिंह राज्यपालों के पदों पर नौकरशाहों की नियुक्ति के हिमायती हैं, ताकि राज्यों पर निगरानी रखी जा सके। नौकरशाहों में सच्चर समिति के अध्यक्ष रहे राजेंद्र सच्चर, पूर्व केबनेट सचिव रहे बी.के.चतुर्वेदी, पद्मनाभैया के अलावा विवादस्पद रहे रोनेन सेन का नाम चर्चाओं में है। गौरतलब है कि सेन ने संसद सदस्यों को ”हेड लेस चिकन” कहकर सनसनी फैला दी थी।
इससे उलट कांग्रेस अध्यक्ष के करीबी सूत्रों का कहना है कि राजमाता चाहतीं हैं कि इन पदों पर राजनेताओं को बिठाकर उन्हें ”एडजेस्ट” किया जाए। सोनिया चाहतीं हैं कि शीशराम ओला, मोहसिना किदवई, पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल जैसे नाम राजनीतिक फिजां में तैर रहे हैं।
कांग्रेस सबसे अधिक पशोपेश में पश्चिम बंगाल को लेकर है। बंगाल में रेलमंत्री अगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजेंद्र सच्चर पर दांव लगाना चाह रहीं हैं। ममता के करीबियों का कहना है कि ममता बनर्जी को सच्चर से कोई खास लगाव नहीं है। वह तो बस मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सच्चर समिति के अध्यक्ष रहे राजेंद्र सच्चर को कोलकता के राजभवन पर काबिज कर अल्पसंख्यकों को रिझाने के फार्मूले पर आगे बढ रहीं हैं।
कांग्रेस बंगाल के राजभवन पर मोहसिना किदवई के नाम पर जोर मार रही है। उधर मोहसिना इसके लिए राजी ही नहीं बताई जा रहीं हैं। सूत्रों ने बताया कि मोहसिना को मनाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने बंगाल के वयोवृद्ध नेता प्रणव मुखर्जी को जिम्मेदारी सौंपी है। बताया जाता है कि प्रणव और मोहसिना के बीच हुई कई दौर की चर्चाओं में एक तरफ जहां प्रणव दा ने मोहसिना को सोनिया का संदेश दिया तो मोहसिना ने साफ तोर पर कह दिया कि वे अपना राज्यसभा का कार्यकाल बढवाने में ज्यादा इच्छुक हैं।
बंगाल का मसला कांग्रेस के लिए इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कूटनीतिक चाल चलते हुए मीडिया में यह उछाल दिया कि वे राजेंद्र सच्चर को बंगाल के लाट साहब बनाने के लिए आतुर हैं। अब कांग्रेस अगर सच्चर से मुंह फेरती है तो सूबे में अल्पसंख्यक कांग्रेस से दूर हो सकते हैं, और अगर हामी भरती है तो जीत ममता की ही मानी जाएगी। यही कारण है कि कांग्रेस का नेतृत्व अपना पूरा जोर लगा रहा है कि मोहसिना किदवई को इसके लिए राजी करवा लिया जाए।
इसके अलावा पद्मनाभैया को आंध्र प्रदेश के मौजूदा संकट निपटाने के लिए वहां भेजा जा सकता है। रोनेन सेन को पंजाब भेजा सकता है। इसके अलावा छत्तीसगढ के महामहिम राज्यपाल नरसिम्हन को भी आंध्र भेजने पर विचार विमर्श किया जा रहा है। उन्हें अगर वहां भेजा जाता है तो फिर छत्तीसगढ के लिए शीशराम ओला के नाम पर विचार संभव है।
राज्यपालों की नियुक्ति के बाद सोनिया गांधी केंद्र सरकार में कांग्रेस के मंत्रियों के परफारमेंस के हिसाब से फेरबदल कर सकतीं हैं। इसमें युवाओं को महत्वपूर्ण जवाबदारी से नवाजे जाने की उम्मीद है। केंद्र में होने वाले फेरबदल के उपरांत कांग्रेस की राजमाता संगठनात्मक स्तर पर अपने पत्ते फेंटेंगी पर उम्मीद है कि इस बार वे अपने सलाहकारों के बजाए कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के लिए भविष्य का रोडमेप बनाने की तैयारी में संगठन में अमूल चूल परिवर्तन कर सकती हैं।
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