Monday, January 18, 2010

हॉकी खिलाडियों की गरिमा बनाये रखने का प्रयास करते : शिवराज – imran haider


एक जमाना था पूरे विश्व में जब भी खेलों की बात की जाती थी तो भारत की पहचान हॉकी चैम्पियन के रुप में उभरकर आती थी। दर्शकों तक भारत हॉकी का सिरमौर रहा, जिस तरह आज क्रिकेट के खिलाड़ी विज्ञापन से लेकर हर जगह छाए हुए हैं ऐसे ही कभी हॉकी खिलाड़ी सभी के आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे। देश में हॉकी ही वह खेल था जिसने अंतर्राष्ट्रीय खेल विरादरी के सामने भारत की साख बचाकर रखी थी, किंतु वतर्मान परिदृश्य अतीत से बिल्कुल भिन्न है। आज हॉकी और इससे जुड़े खिलाड़ियों पर जिस तरह प्रश्नवाचक चिन्ह लगाये जा रहे हैं तथा अन्य खेलों की अपेक्षा हॉकी खिलाड़ियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है उससे जरुर लगने लगा है कि केंद्र सरकार द्वारा खेलों के प्रोत्साहन के लिए बनाई गई सभी बड़ी नीतियाँ केवल कागजों तक ही सीमित हैं। वस्तुतः जब भारत में खेल और खिलाड़ियों पर विचार करते समय राष्ट्रीय खेल हॉकी की गरिमा का ही ध्यान नहीं रखा गया है, तब अन्य खेलों की क्या स्थिति होगी? प्रायः समझा जा सकता है।

यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब हॉकी की दुर्दशा सामने आई है। धनराज पिल्लै के आंसुओं को भला कौन भूल सकता है? आखिरकार वह अपनी मजबूरी छिपाते हुए मीडिया के सामने रो पड़े थे, तब भी मीड़िया द्वारा प्रसारित समाचारों में देशवासियों ने हॉकी खिलाड़ियों की दयनीय हालत को देखा था। लेकिन कुछ दिन बवाल मचने तथा केंद्र सरकारहॉकी फेडरेशन की ओर से आई बयानबाजी के बाद इस मुद्दे को लेकर सभी ओर शांति छा गई थी।

तथ्य बताते हैं कि भारत में रणजी ट्रॉफी में एक क्रिकेट खिलाडी प्रतिदिन का मेहनताना 35 हजार रुपये लेता है, वहीं हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी को कुछ सौ रुपये दिए जाते हैं। अकेले महेंद्र सिंह धोनी को प्रत्येक रन पर 1.5 लाख रुपये दिए गये। क्रिकेट के खिलाडी को प्रति वनडे मैच में 1.06 लाख तथा प्रति टेस्ट मैच 2.5 लाख रुपये मिलते हैं। जीतने पर बोनस अलग से दिया जाता है। जबकि हॉकी टीम की प्रायोजक कम्पनी सहारा इंडिया ने सिर्फ 2004 में ही टीम के प्रत्येक खिलाडी को 25 हजार रुपये मासिक दिए थे। बाद में सहारा इंडिया 3.15 करोड़ रुपये में तीन वर्ष के लिए हॉकी टीम का प्रायोजक बन गया लेकिन यही सहारा इंडिया एक वन डे मैच का प्रायोजक बनने पर 1.9 करोड़ तथा ट्वेंटी 20 के एक मैच के लिए 3 करोड़ रुपये देता है।

मुक्केबाजी, शतरंज, बैडिंमटन, गोल्फ, फुटबाल से लेकर व्यक्तिगत प्रदर्शन करने वाले खेलों निशाने बाजी आदि में खिलाडियों की कमाई का स्तर वहाँ तक पहुँच गया है जहाँ वे अपने खेल पर ध्यान केंद्रित करने हुए आगे का जीवन खुशी के साथ बिता सकते हैं। दूसरी तरफ हॉकी खिलाड़ियों को जो रुपये दिए जा रहे हैं वह उनके टूर्नामेंट में भाग लेने के आधार पर सरकार द्वारा मुहैया कराई गई राशि में से दिये जाते हैं। यही नहीं यदि कोई खिलाड़ी मैच नहीं खेल रहा है तो उसके खाने के पैसे भी हॉकी फेडरेशन नहीं देता है।

एक तरफ जहाँ क्रिकेट खिलाड़ियों को विज्ञापन से लेकर बड़ीबड़ी कम्पनियों में रोजगार के अनेक अवसर उपलब्ध है तथा वे एक वर्ष में कई करोड़ कमा रहे हैं। वहीं हॉकी खिलाडी 25 हजार रुपये मासिक मेहनताना पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह बहुत आश्चर्यजनक लगता है कि एक अरब से ज्यादा के सपनों को पूरा करने तथा राष्ट्रीय खेल के सम्मान को बचाने के लिए मैच के दौरान अपनी पूरी योग्यता, क्षमता और शारीरिक बल लगाने वाले हॉकी खिलाड़ियों को 25 हजार महिने देने के लिए भारत के हॉकी फेडरेशन के पास पैसे नहीं हैं।

हॉकी की इस दुर्दशा को देखकर अब यही कहना होगा कि हॉकी प्रेमी यदि चाहें भी तो उनके मातापिता उन्हें हॉकी खेलने की कतई इजाजत नहीं देंगे। यदि कोई हॉकी खेलना चाहेगा तो उससे यही कहा जाएगा कि खिलाड़ी ही बनना है तो क्रिकेट या टेनिस खेलो, मुक्केबाजी या गोल्फ खेलो क्योंकि इसमें ’चक दे इंडिया॔ की जगह ’चेक दे इंडिया॔ का नारा ज्यादा फायदेमंद प्रतीत होता है।

ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने प्रदेश के खेल एवं युवक कल्याण विभाग की समीक्षा के दौरान जो भारतीय हॉकी का सहारा बनने की बात कही है वह स्वागत योग्य है। वस्तुतः देश में इस तरह की अनोखी पहल अभी तक न किसी राज्य ने की है और न ही खेलों से जुडी किसी संस्था द्वारा ऐसा कार्य करने का प्रयास किया गया है। आज राष्ट्रीय खेल हॉकी की जो दुर्दशा है उसे देखते हुए होना तो यह चाहिए था कि देश में अनेकों हाथ वादविवाद से परे हटकर हॉकी को श्रेष्ठ और आगे ब़ाने के लिए उठाते किंतु ऐसा नहीं हो सका। कारण जो भी रहे हों, सच्चाई तो यही है कि राष्ट्रीय खेल हॉकी की सुध सही मायने में मध्यप्रदेश सरकार ने ली है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह घोषणा जिसमें उन्होंने कहा कि देश के राष्ट्रीय खेल पर किसी प्रकार का संकट नहीं आने दिया जायेगा। खिलाडी पैसे के लिए राष्ट्रीय खेल का बहिष्कार कर रहे हैं इसलिए मध्यप्रदेश सरकार उनके वेतन भत्ते तथा प्रशिक्षण सहित सारे खर्च वहन करने को तौयार है। इस वक्तव्य ने खेल जगत में यह संदेश सही ढँग से पहुँचा दिया है कि मध्यप्रदेश की सरकार खेलों को ब़ावा देने तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की साख सभी खेलों में बाने के प्रति गंभीर है। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खिलाड़ियों से यह कहना भी प्रेरणादायी है कि खिलाडी केवल देश के लिए सोचे न कि आर्थिक स्थिति के बारे में चिंता जतायें। खिलाड़ियों तथा कोच के वेतनभत्तों के निर्णय लेने का अधिकार सरकार का विषय है। इस बारे में खिलाड़ियों को देश हित को ध्यान में रखना चाहिए। इस वाक्य के माध्यम से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हॉकी खेलने वाले खिलाड़ियों सहित अन्य किसी भी खेल से जुडे खिलाड़ी को यह संदेश पहुँचाने में सफलता प्राप्त की है कि देशहित से ब़कर खिलाड़ी के लिए अन्य कुछ भी नहीं होना चाहिए।

उन्होंने मध्यप्रदेश के औबेदुल्ला गोल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट को भी मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित किए जाने की बात कहकर प्रदेश सहित देश के सभी हॉकी प्रेमियों का दिल जीत लिया है, वहीं मुख्यमंत्री ने यह विचार भी सहजता से जनजन तक पहुंचा दिया कि उनकी सरकार राष्ट्रीय खेल हॉकी की दयनीय हालत पर न केवल चिंतित है बल्कि उसे पुनः उसके स्वर्णिम अतीत की ओर ले जाने के प्रति गंभीर भी है। मुख्यमंत्री सिर्फ राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ियों को वेतन तथा अन्य भत्ते देने का कोरा आश्वासन नहीं दे रहे हैं. इस पर शीघ्र अमल करने की योजना प्रदेश सरकार बना रही है। मध्यप्रदेश सरकार जल्द राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ियों के हित में ठोस कदम उठाएगी।

मध्यप्रदेश के युवा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इसी प्रकार के निरंतर किए गये प्रयत्नों का परिणाम है। जिनके कारण आज मध्यप्रदेश के खिलाडी राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं। हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ियों के प्रति अपनी चिंता और उन्हें दिये जाने वाले सहयोग को लेकर हाथ ब़ाने की इच्छा शक्ति जाहिर कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देशहित के किसी भी मुद्दें पर मध्यप्रदेश सहयोग से कभी पीछे हटने वाला नहीं है।

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